भारत में बांस की खेती का प्रचलन ज्यादा पुराना नहीं है, लेकिन प्राकृतिक रूप में उगे व मानव जीवन में उस के उपयोग के प्रमाण बहुत ही पुराने हैं. भारत की मिट्टी और जलवायु दोनों ही बांस की खेती के अनुकूल हैं. सामान्यतया बांस कई तरह के होते हैं, लेकिन भारत में इस की 10 तरह की किस्मों को उगा कर आर्थिक लाभ लिया जा सकता है.
ठंडे पहाड़ी प्रदेशों से ले कर उष्ण कटिबंधों तक, संपूर्ण पूर्वी एशिया में, 50 डिगरी उत्तरी अक्षांश से ले कर उत्तरी आस्ट्रेलिया और पश्चिम में, भारत व हिमालय में, अफ्रीका के उपसहारा क्षेत्रों और अमेरिका में दक्षिणपूर्व अमेरिका से ले कर अर्जेंटीना एवं चिली में ( 47 डिगरी दक्षिण अक्षांश ) तक बांस के जंगल पाए जाते हैं.
एक बार बांस खेत में लगा दिया जाए, तो 5 साल बाद वह उपज देने लगता है. अन्य फसलों पर सूखे व कीट बीमारियों का प्रकोप हो सकता है, जिस के कारण किसान को आर्थिक हानि उठानी पड़ती है. लेकिन बांस एक ऐसी फसल है, जिस पर सूखे एवं वर्षा का अधिक प्रभाव नहीं पड़ता है.
बांस का पेड़ अन्य पेड़ों की अपेक्षा 30 फीसदी अधिक औक्सीजन छोड़ता है और कार्बन डाईऑक्साइड खींचता है. साथ ही, यह पीपल के पेड़ की तरह दिन में कार्बन डाईऑक्साइड खींचता है और रात में औक्सीजन छोड़ता है.
भारत में बांस के जंगलों का कुल क्षेत्रफल 11.4 मिलियन हेक्टेयर है, जो कुल जंगलों के क्षेत्रफल का 13 फीसदी है. अभी तक बांस के लगभग 2,000 विभिन्न उपयोगों की जानकारी है.
भारत में बांस का अनुमानित वार्षिक उत्पादन 1.35 करोड़ टन है. देश का उत्तरपूर्वी क्षेत्र बांस के उत्पादन में काफी समृद्ध है एवं देश के 65 फीसदी और विश्व के 20 फीसदी बांस का उत्पादन करता है. चीन के बाद भारत बांस के अनुवांशिक संसाधनों में 136 प्रजातियों के साथ दूसरे स्थान पर है, जिस में से 58 प्रजातियां उत्तरपूर्वी भारत में पाई जाती हैं.
बांस की खेती
भारत में विभिन्न राज्यों के गांवों में इस की खेती की जाती है. इस का उपयोग अगरबत्ती की छड़ें और बांस की लकड़ी के चिक उद्योग में भी किया जाता है. बांस किसी भी प्रकार की मिट्टी में 700 मीटर की ऊंचाई तक उगाया जाता है.
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फार्म एन फूड की ओर से सम्मान पाने वाले किसानों को फ्रेम कराने लायक यादगार भेंट
उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड
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