आलू सब्जी वाली फसल है. इस की खेती रबी या शरद मौसम में की जाती है. इस की उपज के क्षमता समय अनुसार सभी फसलों से ज्यादा है, इसीलिए इस को 'अकालनाशक फसल' भी कहते हैं. इस का प्रत्येक कंद पोषक तत्त्वों का भंडार है, जो बच्चों से ले कर बड़ों तक के शरीर का पोषण करता है.
भारत में मूल रूप से आलू की खेती प्रारंभिक अवस्था में पहाड़ी इलाकों में की जाती थी. आलू के स्वाद एवं पौष्टिकता ने स्थानीय किसानों को आकर्षित किया और धीरेधीरे आलू की खेती का विस्तार मैदानी इलाकों में भी अक्तूबर से मार्च माह तक होने लगा.
हमारे देश में आलू मुख्य रूप से सर्दियों के मौसम में उगाया जाता है. आलू की फसल तैयार होने की कम अवधि के कारण इसे आसानी से 2 फसलों के बीच में किया जा सकता है, जिस से फसल सघनता भी प्रभावित नहीं होती है. समान हालात में दूसरी फसलों की तुलना में आलू की खेती से प्रति इकाई क्षेत्रफल व समय में अधिक लाभ प्राप्त होता है. बढ़ती आबादी के लिए भोजन के साथसाथ आलू की खेती गांवों में रोजगार के अवसर का भी महत्त्वपूर्ण विकल्प हो सकता है.
खेत का चुनाव
आलू उगाने के लिए समतल खेत का चुनाव करना चाहिए. किसी भी दशा में खेत का ढलान 0.5 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए. जहां तक संभव हो, आलू उन खेतों में न लगाएं, जहां पिछले साल आलू की फसल ली गई हो. फसल को अदलबदल कर लगाने से मिट्टी से पैदा होने वाली आलू की बीमारियां जैसे काली रूसी, मृदु गलन, शुष्क गलन, भूरा गलन, साधारण चूर्णी खुरंड (स्कैब), जीवाणु मुरझान और मूलग्रंथि सूत्रकृमि आदि से छुटकारा पाया जा सकता है.
मिट्टी का चुनाव
बलुई दोमट मिट्टी, जिस में जल निकासी का उचित प्रबंध हो, आलू के उत्पादन के लिए बेहतर है. अगर खाद और पानी की उचित व्यवस्था हो, तो बलुई मिट्टी में भी आलू उगाया जा सकता है. भारी मिट्टी आलू की खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती है.
ग्रीष्मकालीन जुताई और हरी खाद
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अगस्त महीने के खेती के काम
अगस्त के महीने में बरसाती मौसम का आखिरी दौर चल रहा होता है और देश के अनेक हिस्सों में धान की खेती बरसात के भरोसे ही की जाती है. बरसात के दिनों में फसल में कीट, रोगों व खरपतवारों का भी अधिक प्रकोप होता है, इसलिए समय रहते उन की रोकथाम भी जरूरी है.
बागबानी के लिए आम की विदेशी रंगीन किस्में
आम उत्पादन के मामले में भारत दुनियाभर में पहले स्थान पर है. इस की एक खास वजह यह है कि भारतीय आम अपने आ स्वाद, रंग, बनावट और गुणवत्ता के मामले में किसी को भी अपना मुरीद बना लेता है.
हेलदी की उन्नत खेती बढाए आमदनी
हलदी का प्रयोग न केवल मसाले के रूप में खाने के लिए होता है, बल्कि सौंदर्य प्रसाधनों और औषधियों के लिए भी होता है. हलदी को एक बेहतर एंटीबायोटिक माना गया है, जो शरीर में रोग से लड़ने की कूवत को बढ़ाने में मदद करता है.
पोपलर उगाएं ज्यादा कमाएं
पोपलर कम समय में तेजी से चढ़ने वाला पेड़ है. इस की अच्छी नस्लें तकरीबन 5 से पा 8 साल में तैयार हो जाती हैं. पोपलर की पौध एक साल में तकरीबन 3 से 5 मीटर तक ऊंची हो जाती है. उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और हिमाचल प्रदेश के मैदानी इलाकों में इन को देखा जा सकता है.
टिंगरी मशरूम से बनाएं स्वादिष्ठ अचार
हमारे यहां की रसोई में अचार अपना एक अलग ही स्थान रखता है. यह हमारे भोजन को और भी लजीज व स्वादिष्ठ बनाता है. भारतीय रसोई में ह मशरूम भी अहम स्थान रखते हैं. मशरूम का अचार इसे और भी अधिक लजीज और रुचिकर बना देता है. इस का स्वाद और खुशबू हर किसी को मोहित कर देती है.
तालाबों में जल संरक्षण के साथ हों मखाने की खेती
दुनिया का 90 फीसदी मखाना भारत में होता है और अकेले बिहार में इस का उत्पादन 85 फीसदी से अधिक होता है. इस के अलावा देश के उत्तरपूर्वी इलाकों में भी इस की खेती आसानी से की जा सकती है. यहां पर जो तालाब हैं, उन में पानी भर कर मखाने की खेती को बढ़ावा दिया जा सकता है, जिस से किसानों को फायदा होगा. साथ ही, जल संरक्षण को भी बढ़ावा मिल सकेगा.
पालक की उन्नत खेती
पत्तेदार सब्जियों में सर्वाधिक खेती पालक की होती है. यह एक ऐसी फसल है, जो कम समय और कम लागत में अच्छा मुनाफा देती है. पालक की बोआई एक बार करने के बाद उस की 5-6 बार कटाई संभव है. इस की फसल में कीट व बीमारियों का प्रकोप कम पाया जाता है.
कम खेती में कैसे करें अधिक कमाई
अतिरिक्त आय अर्जित करने के लिए किसानों को अपनी मानसिकता में कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए बदलाव लाना होगा. खेती के अलावा किसानों को उद्यानिक फसलों की ओर भी ध्यान देना होगा.
खेत हो रहे बांझ इस का असल जिम्मेदार कौन?
अपने देश में पिछले 5 सालों में विभिन्न कारणों से किसान लगातार आंदोलन कर रहे हैं, पर आज हम न तो आंदोलनों की बात करेंगे और न ही किसी सरकार पर कोई आरोप लगाएंगे. हम यहां भारतीय खेती की वर्तमान दशा व दिशा का एक निष्पक्ष आकलन करने की कोशिश करेंगे.
बजट 2024 : किसानों के साथ एक बार फिर 'छलावा'
भारत की केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का बजट 2024-25 खासतौर पर 2 माने में अभूतपूर्व रहा. पहला तो यह कि देश के इतिहास में पहली बार किसी वित्त मंत्री ने 7वीं बार बजट पेश किया है. हालांकि इस रिकौर्ड के बनने से देश का क्या भला होने वाला है, पर इकोनॉमी पर क्या प्रभाव पड़ना है, यह अभी भी शोधकर्ताओं के शोध का विषय है. दूसरा यह कि कृषि की वर्तमान आवश्यकता के मद्देनजर इस बजट में देश की खेती और किसानों के लिए ऐतिहासिक रूप से अपर्याप्त न्यूनतम राशि का प्रावधान किया गया है.