जहांगीरी घंटा साबित हुआ पीएम का शिकायत सुझाव पोर्टल - डा. राजाराम त्रिपाठी
Farm and Food|December First 2023
सरकार यह कहते नहीं थकती है कि वह हर नागरिक की सहभागिता शासन में चाहती है. ऐसे में कोई विशेषज्ञ अगर मेहनत कर के कोई सार्थक सुझाव सरकार को भेजता है, तो उसे कोई श्रेय देना तो दूर उस की अभिस्वीकृति तक नहीं की जाती है. ऐसे में 'सब का साथ, सब का विकास' जैसे खोखले नारों का क्या मतलब रह जाता है?
भानु प्रकाश राणा
जहांगीरी घंटा साबित हुआ पीएम का शिकायत सुझाव पोर्टल - डा. राजाराम त्रिपाठी

राष्ट्रीय संयोजक (आईफा), राष्ट्रीय प्रवक्ता, एमएसपी गारंटी कानून किसान मोरचा

हा जाता है कि मुगलकाल में बादशाह जहांगीर ने लोगों को जल्दी से जल्दी इंसाफ देने के लिए किले के दरवाजे पर एक बड़ा सा घंटा लटकवाया था. इसे कोई भी फरियादी दिनरात कभी भी बजा कर सीधे मुल्क के बादशाह से अपनी शिकायत दर्ज कर इंसाफ हासिल कर सकता था. इसी जहांगीरी घंटे की तर्ज पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खूब तामझाम व प्रचारप्रसार के साथ पीएमओ पोर्टल शुरू किया.

सोशल मीडिया के इस प्लेटफार्म पर लोग अपनी जायज शिकायत सीधे प्रधानमंत्री तक पहुंचा सकते थे और उन शिकायतों पर जल्दी कार्यवाही व निराकरण कर उन्हें राहत पहुंचाने का दावा किया गया था. कहा गया था कि इस पोर्टल पर देश का हर नागरिक अपनी सीधी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए अपने उपयोगी सुझाव, योजनाएं सीधे अपने प्रधानमंत्री को भेज सकता है.

प्रधानमंत्री के इस पीएमओ पोर्टल का वास्तविक हश्र क्या हुआ, यह समझने के लिए हमें पहले इन की कार्यप्रणाली समझनी होगी. नरेंद्र मोदी के पिछले लगभग 10 सालों के कार्यकाल की हमें अगर एक वाक्य में व्याख्या करनी हो, तो इसे वादों, नारों, जुमलों और भव् आयोजनों की सरकार कहा जा सकता है.

नरेंद्र मोदी ने देश को भले ही कुछ और दिया हो या न दिया हो, लेकिन निश्चित रूप से इन्होंने कई लोकप्रिय नारे दिए हैं. इन्हीं नारों में इन का एक प्रमुख नारा था, 'सब का साथ, सब का विश्वास'. लेकिन सरकार और नरेंद्र मोदी साथ और विश्वास तो सब का चाहते हैं, परंतु किसी को भी, उस के योगदान के लिए श्रेय देना तो जैसे इन्होंने सीखा ही नहीं, बल्कि इस बात का ध्यान रखा जाता है कि हर काम और उपलब्धियों का श्रेय मोदी और केवल मोदी को ही जाना चाहिए. किसी भी उपलब्धि का श्रेय वे अपनी पार्टी यहां तक कि संबंधित विभाग के मंत्रियों के साथ भी बांटने को तैयार नहीं हैं.

Denne historien er fra December First 2023-utgaven av Farm and Food.

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