भारत में अनाज वाली फसलें अधिक रकबे में पैदा की जाती हैं. उन में नाइट्रोजन और पोटाश के उपयोग का आदर्श अनुपात 4:1 माना गया है, लेकिन वर्तमान में यह अनुपात 6:1 है. खेती में उर्वरकों का असंतुलित उपयोग भी इस की एक बड़ी वजह है, इसलिए जरूरी है कि उर्वरक का उपयोग हमेशा संतुलित मात्रा में संस्तुति के अनुसार ही करें.
भूमि में पौधों का भोजन पोषक तत्त्वों के रूप में उपस्थित रहता है, जिन्हें पौधा लगातार लेता रहता है. पौध में कोई सा भी एक पोषक तत्त्व काफी समय तक भूमि को न दिया जाएं, तो भूमि में प्राकृतिक रूप से उपस्थित पोषक तत्त्वों की कमी होने लगती है. जब ये आवश्यक पोषक तत्त्व पौधों को उपलब्ध नहीं होते हैं, तो फसल की उपज में कमी आती है और संतुलन बिगड़ जाता है. फसलों को कुल 17 पोषक तत्त्वों की विभिन्न मात्रा में जरूरत होती है. नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश प्रमुख पोषक तत्त्व हैं.
खाद के संतुलित प्रयोग
मिट्टी में किसी विशेष प्रकार के पोषक तत्त्व का बहुत कम अथवा बहुत अधिक रहने के कारण पौधे स्वस्थ नहीं रह पाते हैं, इसलिए खाद का प्रयोग इस प्रकार से संतुलित होना चाहिए कि प्रत्येक फसल को उस की जरूरत के मुताबिक पर्याप्त मात्रा में सभी जरूरी पोषक तत्त्व मिल सकें.
यदि फसलों में सिर्फ एक ही पोषक तत्त्व जैसे कि नाइट्रोजन का प्रयोग करेंगे, तो नुकसान हो सकता है. नाइट्रोजन और यूरिया के कारण पौधों की वानस्पतिक बढ़वार में काफी इजाफा होगा. इस प्रकार पौधे भूमि से फास्फेट और पोटाश का भी अधिक शोषण करेंगे.
ऐसा होने पर यदि भूमि से फास्फोरस और पोटाश जैसे पोषक तत्त्वों की कमी हो जाएगी, तो अगली फसल कमजोर होगी और फसल पर मौसमी कीड़े और तमाम बीमारियों के असर की संभावना बढ़ जाएगी.
जिस मिट्टी में फास्फेट और पोटाश प्रचुर मात्रा में होता है, वहां यूरिया के प्रयोग से 1 या 2 साल तक तो बहुत अच्छी फसल होगी, परंतु इस के बाद अगर फास्फेट और पोटाश की खाद नहीं दी जाएगी, तो उपज में भारी कमी देखी जा सकती है.
पोटाश का कब और कैसे करें इस्तेमाल
यदि फसल में एक बार किसी तत्त्व की कमी के लक्षण दिखाई दें, तो आप समझ लीजिए कि तत्त्व की कमी से फसल को नुकसान होना था वह हो चुका है और फिर से उस की पूर्ति होना संभव नहीं है.
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कचरे के पहाड़ों पर खेती कमाई की तकनीक
वर्तमान में कचरा एक गंभीर वैश्विक समस्या बन कर उभरा है. भारत की बात करें, तो साल 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रतिदिन तकरीबन डेढ़ करोड़ टन ठोस कचरा पैदा हो रहा है, जिस में से केवल एकतिहाई से भी कम कचरे का ठीक से निष्पादन हो पाता है. बचे कचरे को खुली जगहों पर ढेर लगाते हैं, जिसे कचरे की लैंडफिलिंग कहते हैं.
सर्दी की फसल शलजम
कम समय में तैयार होने वाली फसल शलजम है. इसे खास देखभाल की जरूरत नहीं होती है और किसान को क मुनाफा भी ज्यादा मिलता है. शलजम जड़ वाली हरी फसल है. इसे ठंडे मौसम में हरी सब्जी के रूप उगाया व इस्तेमाल किया जाता है. शलजम का बड़ा साइज होने पर इस का अचार भी बनाया जाता है.
राममूर्ति मिश्र : वकालत का पेशा छोड़ जैविक खेती से तरक्की करता किसान
हाल के सालों में किसानों ने अंधाधुंध रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग कर धरती का खूब दोहन किया है. जमीन से अत्यधिक उत्पादन लेने की होड़ के चलते खेतों की उत्पादन कूवत लगातार घट रही है, क्योंकि रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग के चलते मिट्टी में कार्बांश की मात्र बेहद कम हो गई है, वहीं सेहत के नजरिए से भी रासायनिक उर्वरकों से पैदा किए जाने वाले अनाज और फलसब्जियां नुकसानदेह साबित हो रहे हैं.
करें पपीते की वैज्ञानिक खेती
पपीता एक महत्त्वपूर्ण फल है. हमारे देश में इस का उत्पादन पूरे साल किया जा सकता है. पपीते की खेती के लिए मुख्य रूप से जाना जाने वाला प्रदेश झारखंड है. यहां उचित जलवायु मिलने के कारण पपीते की अनेक किस्में तैयार की गई हैं.
दिसंबर महीने के जरुरी काम
आमतौर पर किसान नवंबर महीने में ही गेहूं की बोआई का काम खत्म कर देते हैं, मगर किसी वजह से गेहूं की बोआई न हो पाई हो, तो उसे दिसंबर महीने के दूसरे हफ्ते तक जरूर निबटा दें.
चने की खेती और उपज बढाने के तरीके
भारत में बड़े पैमाने पर चने की खेती होती है. चना दलहनी फसल है. यह फसल प्रोटीन, फाइबर और विभिन्न विटामिनों के साथसाथ मिनरलों का स्त्रोत होती है, जो इसे एक पौष्टिक आहार बनाती है.
रोटावेटर से जुताई
आजकल खेती में नएनए यंत्र आ रहे हैं. रोटावेटर ट्रैक्टर से चलने वाला जुताई का एक खास यंत्र है, जो दूसरे यंत्रों की 4-5 जुताई के बराबर अपनी एक ही जुताई से खेत को भुरभरा बना कर खेती योग्य बना देता है.
आलू खुदाई करने वाला खालसा पोटैटो डिगर
खालसा डिगर आवश्यक जनशक्ति और समय बचाता है. इस डिगर को जड़ वाली फसलों की खुदाई के लिए डिजाइन किया गया है. इस का गियर बौक्स में गुणवत्तापूर्ण पुरजों का इस्तेमाल किया गया है, जो लंबे समय तक साथ देने का वादा करते हैं.
कृषि एवं कौशल विकास से ही आत्मनिर्भर भारत बन सकेगा
बातचीत : गौतम टेंटवाल, कौशल विकास एवं रोजगार मंत्री, मध्य प्रदेश
गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के प्रभावी उपाय
खरपतवार ऐसे पौधों को कहते हैं, जो बिना बोआई के ही खेतों में उग आते हैं और बोई गई फसलों को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. मुख्यतः खरपतवार फसलीय पौधों से पोषक तत्त्व, नमी, स्थान यानी जगह और रोशनी के लिए होड़ करते हैं. इस से फसल के उत्पादन में कमी होती है.