जो किसान धान की नर्सरी समय से डाल चुके होते हैं, वे धान की रोपाई जुलाई महीने के पहले हफ्ते से शुरू कर सकते हैं. देर से नर्सरी डालने वाले किसान नर्सरी में पौधों के 20 से 30 दिन के हो जाने पर ही रोपाई करें. इस के अलावा धान की खेती करने के लिए धान की सीधी बोआई भी कर सकते हैं. धान की सीधी बोआई करने के लिए सीडर यंत्र, ड्रम सीडर जैसे कृषि यंत्रों की जरूरत होती है.
धान की जल्दी पकने वाली प्रजातियों की रोपाई जुलाई महीने के दूसरे पखवारे तक की जा सकती है. जिन किसानों ने काला नमक धान, बासमती जैसी सुगंधित प्रजातियों की नर्सरी डाली है, वे रोपाई का काम इस महीने के आखिरी हफ्ते तक कर लें. धान के पौधों की रोपाई के समय यह ध्यान रखें कि कतार से कतार की दूरी 20 सैंटीमीटर रखी जाए और एक जगह पर एकसाथ 2 से 3 पौधे लगाए जाएं.
जिन किसानों ने हरी खाद बनाने के लिए ढैचा या कोई दलहनी फसल बो रखी है, वे मिट्टी पलटने वाले हल से खेत की जुताई करें और खेत में हरी खाद वाली फसल सड़ने के लिए खेत में पानी भर दें.
जिन किसानों ने अपने खेत में मिट्टी की जांच नहीं कराई है, वह अपने खेत की मिट्टी की जांच करा सकते हैं और जांच के बाद मिली संस्तुति के अनुसार ही खेत में खादबीज का इंतजाम करें.
धान की खेती करते समय अधिक उपज वाली फसलों में रोपाई के पहले प्रति हेक्टेयर की दर से 60 किलोग्राम नाइट्रोजन के साथसाथ 60 किलोग्राम फास्फेट और 60 किलोग्राम पोटाश को लेव लगाते समय खेत में मिला दें.
धान की रोपाई से पहले 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से जिंक सल्फेट खेत में जरूर मिलाएं. लेकिन यह जरूर ध्यान रखें कि फास्फोरस वाले उर्वरक के साथ जिंक सल्फेट कभी न मिलाएं. जब भी खेत में दानेदार रसायनों का प्रयोग करें, तो उस के पहले यह तय कर लें कि खेत में 2 से 3 सैंटीमीटर पानी जरूर भरा हो. अगर किसान धान की फसल में नैनो यूरिया का प्रयोग करते हैं, तो उर्वरकों पर लागत में काफी कमी लाई जा सकती है.
जिन किसानों ने मक्का की बोआई समय से कर दी है, वे बोआई के 15 दिन बाद फसल की पहली निराईगुड़ाई का काम पूरा करें. इसी के साथ दूसरी गुड़ाई फसल के 30 से 35 दिन के हो जाने पर करें.
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फार्म एन फूड की ओर से सम्मान पाने वाले किसानों को फ्रेम कराने लायक यादगार भेंट
उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड
'चाइल्ड हैल्प फाउंडेशन' के अधिकारी हुए सम्मानित
भारत में काम करने वाली संस्था 'चाइल्ड हैल्प फाउंडेशन' से जुड़े 3 अधिकारियों संस्थापक ट्रस्टी सुनील वर्गीस, संस्थापक ट्रस्टी राजेंद्र पाठक और प्रोजैक्ट हैड सुनील पांडेय को गरीबी उन्मूलन और जीरो हंगर पर काम करने के लिए 'फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड' से नवाजा गया.
लखनऊ में हुआ उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के किसानों का सम्मान
पहली बार बड़े लैवल पर 'फार्म एन फूड' पत्रिका द्वारा राज्य स्तरीय 'फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड' का आयोजन लखनऊ की संगीत नाटक अकादमी में 17 अक्तूबर, 2024 को किया गया, जिस में उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड से आए तकरीबन 200 किसान शामिल हुए और खेती में नवाचार और तकनीकी के जरीए बदलाव लाने वाले तकरीबन 40 किसानों को राज्य स्तरीय 'फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड' से सम्मानित किया गया.
बढ़ेगी मूंगफली की पैदावार
महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने 7 अक्तूबर, 2024 को मूंगफली पर अनुसंधान एवं विकास को उत्कृष्टता प्रदान करने और किसानों की आय में वृद्धि करने हेतु मूंगफली अनुसंधान निदेशालय, जूनागढ़ के साथ समझौतापत्र पर हस्ताक्षर किए.
खाद्य तेल के दामों पर लगाम, एमआरपी से अधिक न हों दाम
केंद्र सरकार के खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग (डीएफपीडी) के सचिव ने मूल्य निर्धारण रणनीति पर चर्चा करने के लिए पिछले दिनों भारतीय सौल्वेंट ऐक्सट्रैक्शन एसोसिएशन (एसईएआई), भारतीय वनस्पति तेल उत्पादक संघ (आईवीपीए) और सोयाबीन तेल उत्पादक संघ (सोपा) के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की अध्यक्षता की.
अक्तूबर महीने में खेती के खास काम
यह महीना खेतीबारी के नजरिए य से बहुत खास होता है इस महीने में जहां खरीफ की अधिकांश फसलों की कटाई और मड़ाई का काम जोरशोर से किया जाता है, वहीं रबी के सीजन में ली जाने वाली फसलों की रोपाई और बोआई का काम भी तेजी पर होता है.
किसान ने 50 मीट्रिक टन क्षमता का प्याज भंडारगृह बनाया
रकार की मंशा है कि खेती लाभ का धंधा बने. इस के लिए शासन द्वारा किसान हितैषी कई योजनाएं चलाई जा रही हैं.
खेती के साथ गौपालन : आत्मनिर्भर बने किसान निर्मल
आचार्य विद्यासागर गौ संवर्धन योजना का लाभ ले कर उन्नत नस्ल का गौपालन कर किसान एवं पशुपालक निर्मल कुमार पाटीदार एक समृद्ध पशुपालक बन गए हैं.
जीआई पंजीकरण से बढ़ाएं कृषि उत्पादों की अहमियत
हमारे देश में कृषि से जुड़ी फल, फूल और अनाज की ऐसी कई किस्में हैं, जो केवल क्षेत्र विशेष में ही उगाई जाती हैं. अगर इन किस्मों को उक्त क्षेत्र से इतर हट कर उगाने की कोशिश भी की गई, तो उन में वह क्वालिटी नहीं आ पाती है, जो उस क्षेत्र विशेष \" में उगाए जाने पर पाई जाती है.
पराली प्रबंधन पर्यावरण के लिए जरूरी
मौजूदा दौर में पराली प्रबंधन का मुद्दा खास है. पूरे देश में प्रदूषण का जहर लोगों की जिंदगी तबाह कर रहा है और प्रदूषण का दायरा बढ़ाने में पराली का सब से ज्यादा जिम्मा रहता है. सवाल उठता है कि पराली के जंजाल से कैसे निबटा जाए ?