बागबानी के लिए आम की विदेशी रंगीन किस्में
Farm and Food|August First 2024
आम उत्पादन के मामले में भारत दुनियाभर में पहले स्थान पर है. इस की एक खास वजह यह है कि भारतीय आम अपने आ स्वाद, रंग, बनावट और गुणवत्ता के मामले में किसी को भी अपना मुरीद बना लेता है.
बृहस्पति कुमार पांडेय
बागबानी के लिए आम की विदेशी रंगीन किस्में

भारत में की जाने वाली आम की व्यावसायिक किस्मों की बागबानी की बात करें, तो पिछले कुछ सालों तक दशहरी, चौसा, लखनऊ सफेदा, अल्फांसो जैसी किस्मों का लगभग आधे से अधिक के बाजार पर कब्जा हुआ करता था. आम की ये किस्में आमतौर पर अगस्त के पहले सप्ताह तक ही बाजार में नजर आती हैं, लेकिन देश में बीते 2 दशकों में आम की ऐसी तमाम नई किस्में ईजाद की गई हैं, जो अपने खूबसूरत रंग और बनावट के साथ स्वाद के मामले में नायाब रही हैं. साथ ही, ये किस्में पारंपरिक किस्मों की अपेक्षा देर से पकने के कारण बाजार में किसान को अच्छा मुनाफा देने वाली मानी जाती हैं.

इन किस्मों को तोड़ने के बाद सामान्य पारंपरिक किस्मों की अपेक्षा लंबे समय तक एक कमरे के सामान्य तापमान पर भी भंडारित कर के रखा जा सकता है.

देश में विकसित की गई ज्यादातर रंगीन किस्में आम की रंगीन विदेशी किस्मों के क्रौस से तैयार की गई हैं, जबकि आम की ऐसी तमाम विदेशी किस्में हैं, जिन को भारत की आबोहवा बागबानी के लिए माकूल पाया गया है.

अगर भारतीय बागबान बाजार में रंगीन और विदेशी आम की मांग को देखते हुए भारतीय आबोहवा में माकूल पाई गई किस्मों की बागबानी करते हैं, तो निश्चित ही वे अपनी आय में इजाफा कर सकते हैं.

आम की हैडेन प्रजाति

आम की रंगीन किस्मों को ईजाद किए जाने की दिशा में दुनियाभर में क्रांति लाने का काम अमेरिका के फ्लोरिडा शहर से हुआ. फ्लोरिडा में सब से ज्यादा जो रंगीन किस्में ईजाद की गई हैं, उस में हैडेन का ही प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से योगदान रहा है.

अगर हैडेन आम की बात करें, तो इसे फ्लोरिडा में मुल्गोबा और टरपेंटाइन के बीजू पौधों के क्रौस से विकसित किया गया है. आम के हैडेन प्रजाति के फल देखने में खूबसूरत और शानदार स्वाद वाले होते हैं. लेकिन आम की इस किस्म में फंगस की समस्या ज्यादा पाई जाती है, इसलिए बागबान इसे लगाना कम पसंद करते हैं.

टौमी एटकिंस

भारत में टौमी एटकिंस प्रजाति के आम की खेती व्यावसायिक लैवल पर खूब की जाने लगी है. इस का खास रंग और स्वाद बागबानों और आम खाने वाले दोनों को पसंद आता है. इस किस्म बाजार रेट भी बहुत अच्छा है, क्योंकि टौमी एटकिंस प्रजाति के आम बड़े शहरों में सौ रुपए प्रति पीस के हिसाब से बिकते हैं.

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अगस्त महीने के खेती के काम
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अगस्त महीने के खेती के काम

अगस्त के महीने में बरसाती मौसम का आखिरी दौर चल रहा होता है और देश के अनेक हिस्सों में धान की खेती बरसात के भरोसे ही की जाती है. बरसात के दिनों में फसल में कीट, रोगों व खरपतवारों का भी अधिक प्रकोप होता है, इसलिए समय रहते उन की रोकथाम भी जरूरी है.

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बागबानी के लिए आम की विदेशी रंगीन किस्में
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हेलदी की उन्नत खेती बढाए आमदनी
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हलदी का प्रयोग न केवल मसाले के रूप में खाने के लिए होता है, बल्कि सौंदर्य प्रसाधनों और औषधियों के लिए भी होता है. हलदी को एक बेहतर एंटीबायोटिक माना गया है, जो शरीर में रोग से लड़ने की कूवत को बढ़ाने में मदद करता है.

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पोपलर उगाएं ज्यादा कमाएं
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पोपलर कम समय में तेजी से चढ़ने वाला पेड़ है. इस की अच्छी नस्लें तकरीबन 5 से पा 8 साल में तैयार हो जाती हैं. पोपलर की पौध एक साल में तकरीबन 3 से 5 मीटर तक ऊंची हो जाती है. उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और हिमाचल प्रदेश के मैदानी इलाकों में इन को देखा जा सकता है.

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टिंगरी मशरूम से बनाएं स्वादिष्ठ अचार
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हमारे यहां की रसोई में अचार अपना एक अलग ही स्थान रखता है. यह हमारे भोजन को और भी लजीज व स्वादिष्ठ बनाता है. भारतीय रसोई में ह मशरूम भी अहम स्थान रखते हैं. मशरूम का अचार इसे और भी अधिक लजीज और रुचिकर बना देता है. इस का स्वाद और खुशबू हर किसी को मोहित कर देती है.

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तालाबों में जल संरक्षण के साथ हों मखाने की खेती
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दुनिया का 90 फीसदी मखाना भारत में होता है और अकेले बिहार में इस का उत्पादन 85 फीसदी से अधिक होता है. इस के अलावा देश के उत्तरपूर्वी इलाकों में भी इस की खेती आसानी से की जा सकती है. यहां पर जो तालाब हैं, उन में पानी भर कर मखाने की खेती को बढ़ावा दिया जा सकता है, जिस से किसानों को फायदा होगा. साथ ही, जल संरक्षण को भी बढ़ावा मिल सकेगा.

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पालक की उन्नत खेती
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पत्तेदार सब्जियों में सर्वाधिक खेती पालक की होती है. यह एक ऐसी फसल है, जो कम समय और कम लागत में अच्छा मुनाफा देती है. पालक की बोआई एक बार करने के बाद उस की 5-6 बार कटाई संभव है. इस की फसल में कीट व बीमारियों का प्रकोप कम पाया जाता है.

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कम खेती में कैसे करें अधिक कमाई
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अतिरिक्त आय अर्जित करने के लिए किसानों को अपनी मानसिकता में कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए बदलाव लाना होगा. खेती के अलावा किसानों को उद्यानिक फसलों की ओर भी ध्यान देना होगा.

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खेत हो रहे बांझ इस का असल जिम्मेदार कौन?
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अपने देश में पिछले 5 सालों में विभिन्न कारणों से किसान लगातार आंदोलन कर रहे हैं, पर आज हम न तो आंदोलनों की बात करेंगे और न ही किसी सरकार पर कोई आरोप लगाएंगे. हम यहां भारतीय खेती की वर्तमान दशा व दिशा का एक निष्पक्ष आकलन करने की कोशिश करेंगे.

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बजट 2024 : किसानों के साथ एक बार फिर 'छलावा'
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भारत की केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का बजट 2024-25 खासतौर पर 2 माने में अभूतपूर्व रहा. पहला तो यह कि देश के इतिहास में पहली बार किसी वित्त मंत्री ने 7वीं बार बजट पेश किया है. हालांकि इस रिकौर्ड के बनने से देश का क्या भला होने वाला है, पर इकोनॉमी पर क्या प्रभाव पड़ना है, यह अभी भी शोधकर्ताओं के शोध का विषय है. दूसरा यह कि कृषि की वर्तमान आवश्यकता के मद्देनजर इस बजट में देश की खेती और किसानों के लिए ऐतिहासिक रूप से अपर्याप्त न्यूनतम राशि का प्रावधान किया गया है.

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