कृषि से जुड़ी ऐसी किस्मों के विशेष भौगोलिक क्षेत्र में पैदा होने के चलते यह मान लिया जाता है कि उक्त किस्मों की मूल उत्पत्ति का स्थान वही भौगोलिक क्षेत्र है, जिस में उगाए जाने पर उक्त कृषि उत्पाद में खास तरह के गुण आते हैं.
सरकार ऐसे विशेष भौगोलिक क्षेत्रों में ख़ास रूप से उगाए जाने वाले फल, फूल, अनाज की किस्मों को जीआई टैग यानी भौगोलिक संकेत टैग प्रदान करने का काम करती है. इस से उक्त क्षेत्र को उस विशेष किस्म के लिए निर्यात के लिए एकाधिकार प्राप्त हो जाता है.
किसी भी कृषि उत्पाद को जीआई टैग मिल जाने से खेती से जुड़े इन खास किस्मों को एक अलग पहचान मिलने के साथ ही उस क्षेत्र के किसानों को विदेशों में निर्यात करने का विशेषाधिकार मिल जाता है यानी जिस क्षेत्र विशेष के लिए जीआई टैग प्रदान किया जाता है, केवल उसी क्षेत्र के लोग ही कानूनी रूप से इस का इस्तेमाल कर सकते हैं.
अभी तक भारत में जीआई टैग यानी जियोग्राफिकल इंडिकेशन कृषि, प्राकृतिक निर्मित वस्तु, कपड़ा, हस्तशिल्प, खाद्य सामग्री आदि कैटेगरी के सैकड़ों उत्पादों को प्रदान किया गया है.
जीआई टैग प्रदान करने का खास उद्देश्य किसी खास गुणवत्ता वाले उत्पाद को विलुप्त होने से बचाने के साथ ही उस के उत्पादन को बढ़ाना भी है, ताकि निर्यात को बढ़ावा मिल सके और संबंधित क्षेत्र में लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा हो सकें. अगर किसी वस्तु को एक बार जीआई टैग मिल जाता है, तो वह अगले 10 साल तक के लिए मान्य होता है, जिसे बाद में रीन्यू यानी उस का नवीनीकरण भी किया जा सकता है.
ऐसे हुई जीआई टैग पंजीयन की शुरुआत
साल 1999 में भारत में भौगोलिक संकेतों की सुरक्षा के लिए संसद द्वारा एक विशिष्ट अधिनियम पारित किया गया, जो विश्व व्यापार " संगठन (डब्ल्यूटीओ) के एक सदस्य के रूप में बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधित
पहलुओं पर समझौते का पालन करने के लिए पास किया गया था.
भारत में भौगोलिक संकेतक ( पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 के अनुसार जीआई टैग प्रदान किया जाता है जीआई टैग उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत भौगोलिक संकेत रजिस्ट्री द्वारा जारी किए जाते हैं
इतनी संख्या में दिया गया जीआई सर्टिफिकेट
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फार्म एन फूड की ओर से सम्मान पाने वाले किसानों को फ्रेम कराने लायक यादगार भेंट
उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड
'चाइल्ड हैल्प फाउंडेशन' के अधिकारी हुए सम्मानित
भारत में काम करने वाली संस्था 'चाइल्ड हैल्प फाउंडेशन' से जुड़े 3 अधिकारियों संस्थापक ट्रस्टी सुनील वर्गीस, संस्थापक ट्रस्टी राजेंद्र पाठक और प्रोजैक्ट हैड सुनील पांडेय को गरीबी उन्मूलन और जीरो हंगर पर काम करने के लिए 'फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड' से नवाजा गया.
लखनऊ में हुआ उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के किसानों का सम्मान
पहली बार बड़े लैवल पर 'फार्म एन फूड' पत्रिका द्वारा राज्य स्तरीय 'फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड' का आयोजन लखनऊ की संगीत नाटक अकादमी में 17 अक्तूबर, 2024 को किया गया, जिस में उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड से आए तकरीबन 200 किसान शामिल हुए और खेती में नवाचार और तकनीकी के जरीए बदलाव लाने वाले तकरीबन 40 किसानों को राज्य स्तरीय 'फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड' से सम्मानित किया गया.
बढ़ेगी मूंगफली की पैदावार
महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने 7 अक्तूबर, 2024 को मूंगफली पर अनुसंधान एवं विकास को उत्कृष्टता प्रदान करने और किसानों की आय में वृद्धि करने हेतु मूंगफली अनुसंधान निदेशालय, जूनागढ़ के साथ समझौतापत्र पर हस्ताक्षर किए.
खाद्य तेल के दामों पर लगाम, एमआरपी से अधिक न हों दाम
केंद्र सरकार के खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग (डीएफपीडी) के सचिव ने मूल्य निर्धारण रणनीति पर चर्चा करने के लिए पिछले दिनों भारतीय सौल्वेंट ऐक्सट्रैक्शन एसोसिएशन (एसईएआई), भारतीय वनस्पति तेल उत्पादक संघ (आईवीपीए) और सोयाबीन तेल उत्पादक संघ (सोपा) के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की अध्यक्षता की.
अक्तूबर महीने में खेती के खास काम
यह महीना खेतीबारी के नजरिए य से बहुत खास होता है इस महीने में जहां खरीफ की अधिकांश फसलों की कटाई और मड़ाई का काम जोरशोर से किया जाता है, वहीं रबी के सीजन में ली जाने वाली फसलों की रोपाई और बोआई का काम भी तेजी पर होता है.
किसान ने 50 मीट्रिक टन क्षमता का प्याज भंडारगृह बनाया
रकार की मंशा है कि खेती लाभ का धंधा बने. इस के लिए शासन द्वारा किसान हितैषी कई योजनाएं चलाई जा रही हैं.
खेती के साथ गौपालन : आत्मनिर्भर बने किसान निर्मल
आचार्य विद्यासागर गौ संवर्धन योजना का लाभ ले कर उन्नत नस्ल का गौपालन कर किसान एवं पशुपालक निर्मल कुमार पाटीदार एक समृद्ध पशुपालक बन गए हैं.
जीआई पंजीकरण से बढ़ाएं कृषि उत्पादों की अहमियत
हमारे देश में कृषि से जुड़ी फल, फूल और अनाज की ऐसी कई किस्में हैं, जो केवल क्षेत्र विशेष में ही उगाई जाती हैं. अगर इन किस्मों को उक्त क्षेत्र से इतर हट कर उगाने की कोशिश भी की गई, तो उन में वह क्वालिटी नहीं आ पाती है, जो उस क्षेत्र विशेष \" में उगाए जाने पर पाई जाती है.
पराली प्रबंधन पर्यावरण के लिए जरूरी
मौजूदा दौर में पराली प्रबंधन का मुद्दा खास है. पूरे देश में प्रदूषण का जहर लोगों की जिंदगी तबाह कर रहा है और प्रदूषण का दायरा बढ़ाने में पराली का सब से ज्यादा जिम्मा रहता है. सवाल उठता है कि पराली के जंजाल से कैसे निबटा जाए ?