रोशनी, उल्लास और उमंग का त्योहार है दीपावली। चारों तरफ दीपों की जगमगाहट और रंग-बिरंगी आतिशबाजी इसे और भी खास बनाती हैं। धरती दीपों से जगमगा उठती है तो अमावस्या की रात पटाखों की रोशनी से। ये नजारें हमारी आंखों को बेहद लुभाते हैं। और हमें रोमांच से भर देते हैं। लेकिन पटाखों के फूटने पर उसमें मौजूद सल्फर डाइऑक्साइड तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसी हानिकारक गैसों की मात्रा वातावरण में बढ़ जाती है जिसका असर कई दिनों तक हवा में मौजूद रहता है। जैसे-जैसे पटाखों का शोर थमता है, वैसे-वैसे इससे निकलने वाले जहरीले धुएं हमारे स्वास्थ्य पर अपना कुप्रभाव छोड़ते हैं। ये प्रदूषक तत्त्व हवा को जहरीली बना देते हैं। इस कारण कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं होती हैं, जैसे- त्वचा एलर्जी, सीने में दर्द, आंखों में जलन, खांसी आदि। लेकिन पटाखों से निकलने वाले धुएं सबसे अधिक सांस संबंधी बीमारियों से पीड़ित व्यक्तियों के लिए जानलेवा साबित होते हैं, खासकर अस्थमा के रोगियों के लिए।
अस्थमा यानी दमा फेफड़ों से जुड़ी एक बीमारी है जिसमें रोगी की सांस फूलती है, खांसी होती है, छाती में कफ जमता है। अस्थमा होने पर रोगी के श्वसन नली में सूजन आ जाती है, जिस कारण श्वसन मार्ग सिकुड़ जाता है। नतीजतन रोगी को सांस लेने में परेशानी होती है और दीपावली के दौरान यह समस्या दोगुनी हो जाती है।
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मुझे कभी मृत मृत समझना मैं सदा वर्तमान हूं
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डायबिटीज के कारण यूटीआई का खतरा
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