भगवान शंकर कामनाओं की पूर्ति करने वाले महादेव शिव शंकर हैं। भगवान शिव की पूजा अर्चना, अभिषेक और उपासना की प्राचीनता सर्वमान्य है। जो इनके 16 सोमवार के व्रत, भक्ति-भावना के साथ रखता है, उसकी कामना कभी अधूरी नहीं रहती है। शिव पुराण में उल्लेख किया गया है कि श्रावण मास में किए गए पूजन और जल धाराओं से न केवल भगवान शिव की कृपा होती है, बल्कि साधक पर मां गौरी, गणेश और लक्ष्मी की कृपा भी बनी रहती है। भगवान शिव शुद्ध, सनातन, परब्रह्म हैं। उनकी उपासना परम लाभ के लिए ही या उनका पुनीत प्रेम प्राप्त करने के लिए ही करनी चाहिए। भगवान शंकर की शरण लेने से कर्म शुभ और निष्काम हो जाएंगे, जिससे आप ही सांसारिक कष्टों का नाश हो जाएगा। भगवान शिव की उपासना और साधना की प्राचीनता, प्रचुरता और चमत्कार सर्वमान्य है। देवताओं के अलावा दानवों में भी असुरराज शिव भक्त रावण, हिरण्याक्ष, हिरण्यकश्यप, लवणासुर, भस्मासुर, गजासुर, बाणासुर आदि राक्षसों और दानवों ने भी, देवाधिदेव भगवान शिव की आराधना कर, उनसे अपना अभ्युदय किया।
कथा
इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना का इतिहास संक्षेप में यह है कि हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनकी प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया। यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित है। पंचकेदार की कथा ऐसी मानी जाती है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के में पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए वे से भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वे उन लोगों से रुष्ट थे। भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, पर वे उन्हें वहां नहीं मिले। वे लोग उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे।
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