क्या एक दूसरे के पूरक हैं दर्शनशास्त्र और विज्ञान?
Sadhana Path|October 2023
ज्ञान को हम दो भागों में विभक्त करते हैं। एक है विज्ञान और दूसरा दर्शनशास्त्र। अमूमन विज्ञान और दर्शनशास्त्र पृथक माने जाते हैं। किन्तु कई विषयों पर दोनों में पूरकता भी नजर आती है। दर्शन और विज्ञान के इस संबंध पर आइए विस्तार से चर्चा करें।
नीरज गुप्ता
क्या एक दूसरे के पूरक हैं दर्शनशास्त्र और विज्ञान?

विज्ञान ज्ञान की वह शाखा है जो कार्य-कारण के सिद्धांतों के आधार पर तथ्यों की विवेचना कर सत्य की खोज करती है और दर्शन ज्ञान की वह ज्योति है जो कार्य-कारण के भी परे जाकर सार को खोजती है। तो क्या ये दोनों विपरीत ध्रुवों की भांति कभी नहीं मिल सकते और इनमें कोई मतैक्य (समानता) नहीं हो सकता ? सतही तौर पर देखें तो ऐसा ही लगता है, क्योंकि जहां विज्ञान बिना तर्क व प्रयोग आधारित प्रमाण के एक कदम चलने को भी तैयार नहीं होता, वहीं दर्शन में अधिकांश निष्कर्ष अवधारणाओं पर आधारित प्रतीत होते हैं, जिनमें तर्क को संभवतया इतना महत्त्व नहीं दिया जाता परन्तु हमें लगता है कि यदि छिछले को छोड थोड़ा गहरे पानी पैठकर देखें तो पाएंगे कि ये दोनों एक ही दिशा की ओर इंगित करते हैं, कम से कम हिन्दू दर्शन और विज्ञान के विषय में तो नि:संदेह ऐसा कह सकते हैं कि यह दोनों एक दूसरे के पूरक हैं प्रतिद्वंदी नहीं।

परन्तु यहां हमारा इरादा पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो, परंपरा आधारित सामान्य कर्मकांडों (जो अधिकांशतया स्थानीय वातावरण के अनुसार तात्कालिक परिस्थितियों के परिपेक्ष्य में प्रारंभ होकर पहले रीति-रिवाजों के रूप में स्थापित हो जाते हैं और कालांतर में धार्मिक मान्यताओं का अभिन्न अंग बन जाते हैं) को येण-केण-प्रकारेण विज्ञान की कसौटी पर कसकर दिखाने को कटिबद्ध होकर अपरिपक्व तर्क प्रस्तुत करना नहीं, बल्कि हमारे मनीषियों द्वारा पुरातन काल में, जब आधुनिक विज्ञान अपनी शैशवावस्था में भी नहीं पहुंच पाया था, घन-घोर वनों में स्थित आश्रमों में रहकर दीर्घकाल तक सतत चिंतन-मनन कर प्रतिपादित किये गए ऐसे गूढ़ सिद्धांतों का तुलनात्मक अध्ययन करने का प्रयास करना है, जो विज्ञान द्वारा अपनी तर्क शक्ति से बहुत बाद में सामने लाए जा सके, वह भी आंशिक रूप में।

Denne historien er fra October 2023-utgaven av Sadhana Path.

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