हम सभी जानते हैं की मनुष्य शरीर में दो आंखें होती हैं और दोनों का समान महत्व होता हैं क्योंकि हरेक को अपने दोनों नेत्र प्रिय होते हैं। इसी प्रकार से नर-नारी यह दोनों समान इज्जत व मान्यता के हकदार हैं। किन्तु अनुभव यह कहता है कि नारी के जीवन में कुछ ऐसी विशेषताएं होती हैं जिनके कारण वह अध्यात्म क्षेत्र में पुरुषों से भी आगे निकल सकती है तथा समाज का चारित्रिक नव-निर्माण करने में भी विशेष रूप से कुशल सिद्ध हो सकती है। इस कथन को अच्छी तरह समझने के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि हम नारी के विविध रूपों को जाने।
विश्वभर के मनोवैज्ञानिकों द्वारा किए गए। सर्वेक्षण अनुसार ऐसा माना गया है कि कन्या अथवा कुमारी, लड़कों की तुलना में कम उच्छृंखल, कम उद्दण्ड और कम झगड़ालू होती हैं और वह अनुशासन में भी सहज ही बंध जाती है। इसके साथ-साथ यह भी देखा गया है की कन्याओं में लड़कों की भेंट में स्मृति, एकाग्रता तथा अपने कार्य में तत्परता भी अधिक पाई जाती है। कन्याओं में लज्जा, संकोच तथा भय भी लड़कों की तुलना में अधिक होता है। अतः वे दिव्य गुणों की धारणा में, चरित्र की धारणा में तथा अमर्यादा एवं आसुरियता के त्याग के पुरुषार्थ में अधिक सुगमता से सफल हो सकती । वयस्क होने के पश्चात जब कन्या का विवाह हो जाता है तब फिर उसमें 'सजनी भाव' स्वतः ही उत्पन्न हो जाता है।
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