यही सागर की, सूर्य की परिभाषा है, यही सत्य है। कबीर शब्दों का महासागर हैं, ज्ञान का सूरज हैं। जितना भी कहो थोड़ा है। सच तो यह है बूंद-बूंद में सागर है और किरण-किरण में सूरज। कबीर के भी शब्द-शब्द में जीवन की गहराई है, सच का तेज है जिसे आंकना या कह पाना कठिन है। कबीर ने इतना कहा है कि वह स्वयं शब्द रूप ही हो गए हैं। इसलिए कबीर को समझना हो तो उन्हीं के शब्दों का सहारा लेना पड़ता है।
कबीर के ज्ञान के आगे शास्त्र भी फीके हैं। वेदों में भी इतना ज्ञान नहीं जितना कबीर की वाणी में है। वेदों को महा पंडितों, ज्ञानियों, भाषा एवं व्याकरण के जानकारों ने रचा है फिर भी वह कबीर के ज्ञान के आगे बौने लगते हैं। कबीर की वाणी में विरोधाभास है, क्रांति है। उन्हें किताबों के माध्यम से नहीं हृदय के माध्यम से समझा जा सकता है। जिसे कानों से सुनना या आंखों से पढ़ना संभव नहीं। कबीर को समझने के लिए अनुभव, आत्मानुभव बहुत जरूरी है। प्रेम, भक्ति और समर्पण, कबीर इन सारे शब्दों का शब्दकोश हैं। जैसे ही इंसान इन तीनों शब्दों के अनुभव में आता है तब उसे स्वतः ही कबीर समझ में आ जाते हैं। सच तो यह है उसे कबीर ही नहीं, यह जीवन, आत्मा-परमात्मा आदि का भेद एवं समानता दोनों नजर आ जाते हैं। फिर कबीर की उल्टी बातें भी उल्टी नहीं लगती। सीधी-सीधी दिल में उतरती है जैसे कबीर कहते हैं-
पानी बिच मीन पियासी, मोहि सुनि-सुनि आवत हांसि।
बिन घन परत फुहार या धरती बरसै अम्बर भीजे,
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होए, या बिन नैना दीदार दिखावे
आदि ऐसे अनेक उदाहरण कबीर की वाणी में मिल जाते हैं जो आत्मज्ञान के बाद ही समझ आते हैं। हैरानी की बात तो यह कि कबीर को व्यवहारिक शिक्षा या ज्ञान का कोई इल्म नहीं था, वह अनपढ़ थे। तभी तो उन्होंने कहा है-
'मसि कागद छूयो नहीं, कलम गहि नहीं हाथ'
संत तो बहुत हुए हैं परंतु कबीर की बात ही और है। कबीर ने जो कुछ कहा वह अपने अनुभव के आधार पर कहा। बाकी साधु-संतों ने, गुरुओं ने, ऋषि-मुनियों ने किताबों को पढ़कर कहा। इसी ओर ईशारा करती है कबीर की साखी की ये पंक्ति।
'तू कहता कागद की लेखी, मैं कहता आंखन की देखी।'
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तुलसी से दूर करें वास्तुदोष
हिन्दू धर्म में तुलसी का पौधा हर घर-आंगन की शोभा है। तुलसी सिर्फ हमारे घर की शोभा ही नहीं बल्कि शुभ फलदायी भी है। कैसे, जानें इस लेख से।
क्यों हुआ तुलसी का विवाह?
कार्तिक शुक्ल एकादशी को तुलसी पूजन का उत्सव वैसे तो पूरे भारत में मनाया जाता है, किंतु उत्तर भारत में इसका कुछ ज्यादा ही महत्त्व है। नवमी, दशमी व एकादशी को व्रत एवं पूजन कर अगले दिन तुलसी का पौधा किसी ब्राह्मण को देना बड़ा ही शुभ माना जाता है।
बड़ी अनोखी है कार्तिक स्नान की महिमा
हिन्दू धर्म में पूर्णिमा का महत्त्वपूर्ण स्थान है। बारह पूर्णिमाओं में कार्तिक पूर्णिमा का महत्त्व सर्वाधिक है। मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
सिर्फ एक ही ईश्वर है और उसका नाम हैं सत्यः नानक
सिरवों के प्रथम गुरु थे नानक | अंधविश्वास एवं आडंबरों के विरोधी गुरुनानक का प्रकाश उत्सव अर्थात् उनका जन्मदिन कार्तिक पूर्णिमा को मनाया जाता है। गुरु नानक का मानना था कि ईश्वर कण-कण में व्याप्त है। संपूर्ण विश्व उन्हें सांप्रदायिक एकता, शांति एवं सद्भाव के लिए स्मरण करता है।
सूर्योपासना एवं श्रद्धा के चार दिन
भगवान सूर्य को समर्पित है आस्था का महापर्व छठ । ऐसी मान्यता है कि इस पर्व को करने से सूर्य देवता मनोकामना पूर्ण करते हैं। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को यह पर्व मनाया जाता है, जिस कारण इस पर्व का नाम छठ पड़ा। जानें इस लेख से छठ पर्व की महत्ता।
एक समाज, एक निष्ठा एवं श्रद्धा की छटा का पर्व 'छठ'
छठ की दिनोंदिन बढ़ती आस्था और लोकप्रियता इस बात का प्रमाण है कि कुछ तो विशेष है इस पर्व में जो सबको अपनी ओर खींच लेता है। पूजा के दौरान अपने लोकगीतों को गाते हुए, जमीन से जुड़ी परम्पराओं को निभाते हुए हर वर्ग भेद मिट जाता है। सबका एक साथ आकर बिना किसी भेदभाव के ईश्वर का ध्यान करना... यही तो भारतीय संस्कृति है, और इसीलिए छठ है भारतीय संस्कृति का प्रतीक।
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सोशल नेटवर्किंग साइट्स के जाल में सिर्फ बड़े ही नहीं बच्चे भी फंसते जा रहे हैं, जिसका परिणाम यह है कि बच्चे धीरे-धीरे वर्चुअल दुनिया में ज़्यादा व्यस्त रहने की वजह से वास्तविक दुनिया से दूर होते जा रहे हैं।
सेहत के साथ लें स्वाद का लुत्फ
अच्छे खाने का शौकीन भला कौन नहीं होता है। खाना अगर स्वाद के साथ सेहतमंद भी हो तो बात ही क्या है। सवाल ये उठता है कि अपनी पसंदीदा खाद्य सामग्रियों का सेवन करके फिट कैसे रहा जाए?
लंबी सीटिंग से सेहत को खतरा
लगातार बैठना आज वजह बन रहा कई स्वास्थ्य समस्याओं की। इन्हें नज़र अंदाज करना खतरनाक हो सकता है। जानिए कुछ ऐसे ही परिणामों के बारे में-
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