हिंदी किताबों में हिंदी
Aha Zindagi|September 2024
कोई बोली, भाषा बनती है जब वह लिखी जाती है, उसमें साहित्य रचा जाता है और विविध विषयों पर किताबें छपती हैं। पुस्तकों में भाषा का सुघड़ रूप होता है। हिंदी भाषा की विडंबना है कि उसकी किताबों में अंग्रेज़ी शब्दों की आमद बढ़ती जा रही है। कुछ को यह ज़रूरी लगती है तो बहुतों को किरकिरी। सबके अपने तर्क हैं। 14 सितंबर को हिंदी दिवस के अवसर पर आमुख कथा का पहला लेख इस अहम मुद्दे पर पड़ताल कर रहा है कि हिंदी किताबों में हिंदी क्यों घटती जा रही है?
सुशांत झा
हिंदी किताबों में हिंदी

किसी भी भाषा का साहित्य उसकी संस्कृति और उसके समकालीन इतिहास का भी एक दस्तावेज़ीकरण है। दुनियाभर के विद्वान इस बात पर सहमत है कि अगर कोई भाषा विलुप्त होती है या उसका प्रसार कम हो जाता है तो वह अपने साथ हज़ारों सालों की विरासत को क्षीण करती है या अंतत: उसका विलोप हो जाता है। इतिहास तो कुछ सभ्यताओं, मसलन सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में इसीलिए पूरी तरह पता नहीं चल पाया है क्योंकि उसकी लिपि नहीं पढ़ी जा सकी है। हालांकि पूरी दुनिया के विद्वान उस पर काम कर रहे हैं, लेकिन कल्पना कीजिए कि अगर वह लिपि और भाषा ही विलुप्त हो जाए तो वह एकमात्र खिड़की भी ख़त्म हो जाएगी जिसके माध्यम से उस पर ज़्यादा प्रकाश डाला जा सकता है।

ऐसे में आजकल इस पर उचित ही चर्चा और चिंता की जाती है कि हिंदी किताबों में कितनी हिंदी बची है और उसमें किस तरह से धीरे-धीरे अंग्रेज़ी के शब्दों की संख्या बढ़ती जा रही है। ख़ासकर किताबों के नाम इधर अंग्रेज़ी में रखने का चलन चिंताजनक रूप से बढ़ा है। उसके पक्ष में कई तरह के तर्क दिए जाते हैं जिसमें सारे तर्क औचित्य की कसौटी पर खरे नहीं उतरते।

कितनी अवांछनीय, कितनी अनिवार्य

किताबों के शीर्षक के संदर्भ में सबसे बड़ा तर्क उसके विक्रय और विपणन का है जिसमें विक्रय विभाग इस बात पर जोर देता है कि चूंकि अनूदित किताब पहले से अंग्रेज़ी में है तो उसका नाम पाठकों की ज़ुबान पर छाया रहता है और उसे देवनागरी में लिखकर हूबहू रखने से प्रचार और विक्रय में आसानी होती है। भारत या इस जैसे अन्य औपनिवेशिक दासता झेल चुके देश में यह बड़ी समस्या है जहां अनुवाद, साहित्य का एक बड़ा हिस्सा बन गया है। ज्ञान का प्रवाह, ख़ासकर कथेतर साहित्य में अंग्रेज़ी से हिंदी या अन्य भाषाओं की तरफ़ लगभग इकतरफ़ा होता है। ऐसे में किताबें अंग्रेज़ी में पहले आती हैं और सेल्स की टीम का दबाव होता है कि मूल नाम ही रखा जाए क्योंकि उसके प्रचार में बारंबारता का लाभ (रिकॉल वैल्यू) बरक़रार रहे।

Denne historien er fra September 2024-utgaven av Aha Zindagi.

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लाव-लश्कर के साथ शहंशाह अकबर ने जिस जगह कुछ दिन विश्राम किया, वहां बसी बस्ती कहलाई अकबरपुर। परंतु इस जगह का इतिहास कहीं पुराना है। महाभारत कालीन राजा मोरध्वज की धरती है यह और राममंदिर के लिए पीढ़ियों तक प्राण देने वाले राजा रणविजय सिंह के वंश की भी। इसी इलाक़े की अनूठी गाथा शहरनामा में....

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अब तो खुला खेल फ़र्रुखाबादी है। न तो अश्लील दृश्यों पर कोई लगाम है, न अभद्र भाषा पर। बीप की ध्वनि बीते ज़माने की बात हो गई है। बेलगाम-बेधड़क वेबसीरीज़ ने मूल्यों को इतना गिरा दिया है कि लिहाज़ का कोई मूल्य ही नहीं बचा है।

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मर्म चिकित्सा आयुर्वेद की एक बिना औषधि वाली उपचार पद्धति है। यह सिखाती है कि महान स्वास्थ्य और ख़ुशी कहीं बाहर नहीं, आपके भीतर ही है। इसे जगाने के लिए ही 107 मर्म बिंदुओं पर हल्का स्पर्श किया जाता है।

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सदियों के शहर में आठ पहर
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क्या कभी ख़याल आया कि 'न्यू यॉर्क' है तो कहीं ओल्ड यॉर्क भी होगा? 1664 में एक अमेरिकी शहर का नाम ड्यूक ऑफ़ यॉर्क के नाम पर न्यू यॉर्क रखा गया। ये ड्यूक यानी शासक थे इंग्लैंड की यॉर्कशायर काउंटी के, जहां एक क़स्बानुमा शहर है- यॉर्क। इसी सदियों पुराने शहर में रेलगाड़ी से उतरते ही लेखिका को लगभग एक दिन में जो कुछ मिला, वह सब उन्होंने बयां कर दिया है। यानी एक मुकम्मल यायावरी!

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... श्रीनाथजी के पीछे-पीछे आई
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भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं को जीवंत करती है पिछवाई कला। पिछवाई शब्द का अर्थ है, पीछे का वस्त्र । श्रीनाथजी की मूर्ति के पीछे टांगे जाने वाले भव्य चित्रपट को यह नाम मिला था। यह केवल कला नहीं, रंगों और कूचियों से ईश्वर की आराधना है। मुग्ध कर देने वाली यह कलाकारी लौकिक होते हुए भी कितनी अलौकिक है, इसकी अनुभूति के लिए चलते हैं गुरु-शिष्य परंपरा वाली कार्यशाला में....

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एक वीगन का खानपान
Aha Zindagi

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November 2024
सदा दिवाली आपकी...
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दीपोत्सव के केंद्र में है दीप। अपने बाहरी संसार को जगमग करने के साथ एक दीप अपने अंदर भी जलाना है, ताकि अंतस आलोकित हो। जब भीतर का अंधकार भागेगा तो सारे भ्रम टूट जाएंगे, जागृति का प्रकाश फैलेगा और हर दिन दिवाली हो जाएगी।

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November 2024
'मां' की गोद भी मिले
Aha Zindagi

'मां' की गोद भी मिले

बच्चों को जन्मदात्री मां की गोद तो मिल रही है, लेकिन अब वे इतने भाग्यशाली नहीं कि उन्हें प्रकृति मां की गोद भी मिले- वह प्रकृति मां जिसके सान्निध्य में न केवल सुख है, बल्कि भावी जीवन की शांति और संतुष्टि का एक अहम आधार भी वही है। अतः बच्चों को कुदरत से प्रत्यक्ष रूप से जोड़ने के जतन अभिभावकों को करने होंगे। यह बच्चों के ही नहीं, संसार के भी हित में होगा।

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November 2024