
तनाव प्रबंधन पर लिखे जाने वाले लेखों की शुरुआत कुछ इस तरह से होती है - 'आज के आधुनिक जीवन में तनाव एक आम समस्या बन चुका है। हालांकि वास्तविकता यह है कि तनाव हमारे जीवित और सक्रिय रहने का सबूत है। हम अपने बाहरी और आंतरिक वातावरण में घटित होने वाली हर छोटी-बड़ी घटना के प्रति प्रतिक्रिया करते हैं। यह प्रतिक्रिया ही 'तनाव' कहलाती है। ऐसा नहीं हो सकता कि तनाव हो ही न, क्योंकि जब जीवन में कोई भी चुनौती न हो तब भी तनाव होता है जिसे हाइपोस्ट्रेस (Hypostress) कहा जाता है। यूस्ट्रेस (Eustress) एक सकारात्मक तनाव है जो हमें किसी प्रतिक्रिया के लिए प्रेरित करता है, कार्य करने के लिए तैयार करता है। लेकिन जब हम इस तनाव की गलत व्याख्या करते हैं या इसके प्रति मनोवैज्ञानिक रूप से कमज़ोर पड़ते हैं तो इसका हमारे मन व शरीर पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है, इसे डिस्ट्रेस (Distress) यानी नकारात्मक तनाव कहा जाता है।
एक ही स्थिति के दो असर
ग़ौर करने वाली बात है कि किसी भी घटना की व्याख्या हमारे नियंत्रण में है और हमारे द्वारा की जाने वाली व्याख्या ही तय करेगी कि उससे नकारात्मक तनाव उत्पन्न होगा या सकारात्मक। एक उदाहरण से समझते हैं कि किसी भी घटना की व्याख्या हमारी भावना, शारीरिक प्रतिक्रिया और व्यवहार पर क्या प्रभाव डालती है। इसी से हमारे रिश्ते का भविष्य भी तय होता है।
मान लीजिए कि आप अपने एक दोस्त को फोन करते हैं, पर वह किसी कारणवश फोन रिसीव नहीं करता। घटना महज़ इतनी है कि आपने फोन किया, जिसका जवाब नहीं दिया गया।
व्याख्या 1 (नकारात्मक): आप सोच सकते हैं कि आपका दोस्त जानबूझकर आपका फोन नहीं उठा रहा है।
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वन के दम पर हैं हम
भौतिक विकास के रथ पर सवार मानव स्वयं को भले ही सर्वशक्तिमान और सर्वसमर्थ समझ ले, किंतु उसका जीवन विभिन्न जीव-जंतुओं से लेकर मौसम और जल जैसे प्रकृति के आधारभूत तत्वों पर आश्रित है।

दिखता नहीं, वह भी बह जाता है!
जब भी पानी की बर्बादी की बात होती है तो अक्सर लोग नल से बहते पानी, प्रदूषित होते जलस्रोत या भूजल के अंधाधुंध दोहन की ओर इशारा करते हैं।

वन का हर घर मंदिर
जनजाति समाज घर की ड्योढ़ी को भी देवी स्वरूप मानता है। चौखट और डांडे में देवता देखता है। यहां तक कि घर के बाहर प्रांगण में लगी किवाडी पर भी देवता का वास माना जाता है।

ताक-ताक की बात है
पहले घरों में ताक होते थे जहां ज़रूरी वस्तुएं रखी जाती थीं। अब सपाट दीवारें हैं और हम ताक में रहने लगे हैं।

किताबें पढ़ने वाली हीरोइन.
बॉलीवुड में उनका प्रवेश मानो फूलों की राह पर चलकर हुआ। उनकी शुरुआती दो फिल्मों- कहो ना प्यार है और ग़दर-ने इतिहास रच दिया। बाद में भी कई अच्छी फिल्मों से उनका नाम जुड़ा।

फ़ायदे के रस से भरे नींबू
रायबरेली के 'लेमन मैन' आनंद मिश्रा को कौन नहीं जानता! अच्छी आय की नौकरी को छोड़कर वे पैतृक गांव में लौटे और दो एकड़ कृषि भूमि पर नींबू की खेती करके राष्ट्रीय पहचान बनाई। प्रस्तुत है, उनकी कहानी, उन्हीं की जुबानी।

जहां देखो वहां आसन
योगासन शरीर को तोड़ना-मरोड़ना नहीं है, बल्कि ये प्रकृति की सहज गतियां और स्थितियां हैं। आस-पास नज़रें दौड़ाकर देखने से पता लगेगा कि सभी आसन जीव-जंतुओं और वनस्पतियों से ही प्रेरित हैं, चाहे वो जंगल का राजा हो, फूलों पर मंडराने वाली तितली या ताड़ का पेड़।

बांटने में ही आनंद है
दुनिया में लोग सामान्यत: लेने खड़े हैं, कुछ तो छीनने भी । दान तो देने का भाव है, वह कैसे आएगा! इसलिए दान के नाम पर सौदेबाज़ी होती है, फ़ायदा ढूंढा जाता है। इसके ठीक उलट, वास्तविक दान होता है स्वांतः सुखाय- जिसमें देने वाले की आत्मा प्रसन्न होती है।
बहानेबाज़ी भी एक कला है!
कई बार कितनी भी कोशिश कर लो, ऑफिस पहुंचने में देर हो ही जाती है, ऐसे में कुछ लोग मासूम-सी शक्ल बना लेते हैं तो कुछ लोग आत्मविश्वास के साथ कुछ बहाना पेश करते हैं। और बहाने भी ऐसे कि हंसी छूट जाए। बात इन्हीं बहानेबाज़ लोगों की हो रही है।

बहानेबाज़ी भी एक कला है!
कई बार कितनी भी कोशिश कर लो, ऑफिस पहुंचने में देर हो ही जाती है, ऐसे में कुछ लोग मासूम-सी शक्ल बना लेते हैं तो कुछ लोग आत्मविश्वास के साथ कुछ बहाना पेश करते हैं। और बहाने भी ऐसे कि हंसी छूट जाए। बात इन्हीं बहानेबाज़ लोगों की हो रही है।