कनाट प्लेस की उस दस मंजिली इमारत की नौवीं मंजिल पर अपने औफिस में बैठे प्रताप ने घड़ी पर नजर डाली. रात के 8 बज रहे थे. वैसे तो वह शाम 7 बजे तक औफिस से निकल जाता था,
लेकिन आज नवीन ने आने के लिए कहा था, इसलिए वह औफिस में बैठा उसी का इंतजार कर रहा था.
नवीन की अभी नईनई शादी हुई थी. उसी के उपलक्ष्य में आज उस ने पीनेपिलाने का इंतजाम किया था.
आखिर 8:30 बजे नवीन आया. उस के साथ अश्विनी और राजन भी थे. नवीन ने नीचे से ही प्रताप को फोन किया तो वह नीचे आ गया था.
जनवरी का महीना और फिर हलकीफुलकी बूंदाबांदी होने से ठंड एकदम से बढ़ गई थी. शाम होते ही कुहरे ने भी अपना साम्राज्य फैलाना शुरू कर दिया था.
प्रताप के नीचे आते ही नवीन ने कहा, "यार, जल्दी गाड़ी निकाल, ठंड बहुत है."
प्रताप को भी ठंड लग रही थी. उस ने जैकेट का कौलर खड़ा कर के कान ढकने का प्रयास किया. फिर दोनों हथेलियां रगड़ते हुए पार्किंग की ओर बढ़ गया. उस के गाड़ी लाते ही तीनों जल्दीजल्दी गाड़ी में घुस गए. गाड़ी बिल्डिंग के गेट तक पहुंचती, उस के पहले ही तीनों ने तय कर लिया कि कहां खानापीना होगा.
बिल्डिंग के गेट से गाड़ी सड़क पर आई तो सड़क पर वाहनों की रेलमपेल थी. धीरेधीरे चलते हुए वे एक शराब की दुकान पर पहुंचे. शराब खरीदने के बाद उन्होंने एक रैस्टोरैंट से खाना पैक कराया और चल पड़े राजन के घर की ओर.
राजन वहीं करीब में ही रहता था. गाड़ी इमारत के नीचे खड़ी कर सभी राजन के फ्लैट में पहुंच गए.
राजन उन दिनों अकेला ही था, इसलिए उस का घर अस्तव्यस्त था. उस ने पानी वगैरह का इंतजाम किया और फिर सभी पीने बैठ गए. दोदो पैग गले से नीचे उतरे तो सब के मुंह खुलने लगे.
नवीन ने प्रताप के चेहरे पर नजरें गड़ा कर पूछा, "यार प्रताप तुझे भाभी की याद नहीं आती?"
"मुझे छोड़ कर चली गई. उस की याद करने से क्या फायदा?" प्रताप ने उदास हो कर कहा.
"क्या अब वह वापस नहीं आ सकती?” अश्विनी ने पूछा.
"यदि उसे वापस आना होता तो जाती ही क्यों?" सिगरेट सुलगाते हुए प्रताप ने कहा.
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