सबकुछ सोशल मीडिया हो चला है, राजनीति के धुरंधर नेता भी रील और शौर्ट वीडियोज बना रहे हैं. नेताओं की चलते हुए स्लो मोशन क्लिप वायरल हो रही हैं. हों भी क्यों न, रील वीडियोज में स्लो मोशन का गजब का खेल जो है. नेतामहानेता होने जैसा फील ले पा रहा है, जैसे 'जवान' फिल्म का शाहरुख खान 7 बार जनता का मसीहा बनने के लिए परदे पर स्लो मोशन एंट्री लेता है.
नेता समझ गए हैं, उन के लंबे उबाऊ भाषण युवा नहीं सुनना चाहते. अब तो महामानवों के भाषण भी झूठे, नीरस और बोझिल लग रहे हैं. सोसाइटी, इकौनोमी के लिए क्या अच्छा है, किस पार्टी के क्या मुद्दे हैं, युवा इस में इंट्रैस्टेड नहीं हैं. उन्हें 20-25 सैकेंड का मजा चाहिए. वह तो नेताओं की वीडियो भी शोर्ट क्लिप में देख रहे हैं, उसी से अपनी समझ बना रहे हैं. वे 20-25 सैकंड लायक ही बच गए हैं, अपनी पर्सनल लाइफ में इस से आगे का वे न तो सोच पा रहे हैं न किसी चीज का मजा ले पा रहे हैं.
राजनीति में चुनाव के समय जनता ही सर्वोपरि है, लेकिन जनता तो रील्स में डूबी है. सुबह उठने के साथ रील, संडास जाते रील, दातून करते रील, खाना बनाते रील्स, खाना खाते रील, रील बनाते रील्स, काम करते रील, यहां तक कि सोने से पहले रील ही रील. अगर तर्जनी उंगली और अंगूठे की जांच की जाए तो हाथों की आधी रेखाएं मिटी दिखेंगी. अब जाहिर है युवा रील पर हैं तो नेता क्यों न हों? जहां जनता वहां नेता.
अब यही देख लो, राहुल गांधी शौर्ट वीडियो और स्लो मोशन क्लिप्स से सोशल मीडिया पर वायरल होने लगे तो जमीनी नेता कहे जाने वाले यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी यूट्यूब चैनल सब्सक्राइब करने की अपील करने लगे और फिर हरियाणा के इंफ्लुएंसर अंकित बेथनपुरिया के साथ स्वच्छता दिवस के मौके पर कौलेब करते दिखाई दिए.
तालमेल वाले इंफ्लुएंसर
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जब से बिग बौस ओटीटी आया है तब से एकाएक फालतू सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स इस शो में आ रहे हैं. बिग बौस इन फालतू इन्फ्लुएंसर्स को युवाओं के बीच में प्रचारित तो कर ही रहा है, साथ में आइडियलाइज भी.
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सोशल मीडिया पर खतरनाक स्टंट वाली रील देखना लोग ज्यादा पसंद करते हैं. वायरल होने की चाहत में युवा ऐसी रील बनाने में अपनी जान गंवा रहे हैं. लखनऊ में पूर्वोत्तर रेलवे, लखनऊ मंडल के आंकड़े बताते हैं कि 7 माह में 83 लोगों की जान रील बनाने के चक्कर में गई हैं.
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