"ये वो था तूफान, जो दस्तक दे कर आया था, अकेला था, लगा था लश्कर ले कर आया था.
वो पूछेंगे किस की है ये लोहे जैसी लेगैसी, कहना वो डोंगरी वाला आग ले कर आया था."
लाइनें हैं फेमस रिऐलिटी शो 'बिग बौस 17' के विनर मुनव्वर फारूकी की. वही मुनव्वर जिस ने कंगना रनौत के रिऐलिटी शो 'लौकअप रूम' की ट्रोफी भी जीती थी. मुनव्वर स्टैंडअप कौमेडियन है, सिंगर है, शायर है, रैपर है.
अब जबकि मुनव्वर ने बिग बौस 17 की ट्रौफी जीत ली है तो उसे किसी पहचान की जरूरत नहीं है. जीतने के बाद जब वह डोंगरी गया तो हजारों की भीड़ ने ऐसा उस का स्वागत किया जैसे वह कोई बड़ा नेता या ऐक्टर हो. किस ने सोचा था कि गुजरात के जूनागढ़ का एक लड़का इतना बड़ा खिताब जीत जाएगा. शायद किसी ने भी नहीं. लेकिन कहते हैं, 'मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिन के सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है.'
दंगों की आंच भी झेली
मुनव्वर फारूकी ने अपने इन्हीं हौसलों की बदौलत वह मुकाम पा लिया जिस का सपना सभी ने कभी न कभी देखा होता है. मुनव्वर का यह सफर आसान नहीं था. यहां तक पहुंचने के लिए उस ने कई मुश्किलों का सामना किया. 2002 के गुजरात दंगों में जलने वाले घरों में एक घर मुनव्वर का भी था. वही दंगा जिस की चपेट में हजारों लोगों ने अपनी जान गंवाई. मुन्नवर ने ऐसा भी वक्त देखा जब घर के बरतनों को बेच कर दो वक्त के खाने का जुगाड़ किया गया.
आज मुनव्वर मुंबई में रहता लेकिन वह हमेशा से यहां नहीं रहता था. 28 जनवरी, 1992 को गुजरात के जूनागढ़ में पैदा हुआ मुन्नवर 3 बहनों का भाई है. जब मुनव्वर 16 साल का था तब उस की मां ने 3,500 रुपए कर्ज न चुका पाने के चलते सुसाइड कर लिया था. 2008 में मुनव्वर के पिता उसे और अपनी तीनों बेटियों को ले कर मुंबई आ गए थे. वे मुंबई के डोंगरी में रहने लगे. मुंबई आने के बाद उस के पिता की बीमारी के चलते मौत हो गई. 17 साल की उम्र में मुनव्वर के ऊपर पूरे परिवार की जिम्मेदारियां आ गईं.
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