भारत का सिकुड़ता एजुकेशन बजट और सोशल मीडिया पर मस्त युवा
Mukta|September 2024
पिछले कुछ सालों से भारत का पहले से कम एजुकेशन बजट और भी सिकुड़ता जा रहा है. 2024-25 में इस क्षेत्र में और भी कटौती की गई है. नई रिसर्चों व टैक्नोलौजी के लिए हमें विदेशों की तरफ ताकना पड़ता है लेकिन भारत का युवा सोशल मीडिया पर मस्त है.
शिखा
भारत का सिकुड़ता एजुकेशन बजट और सोशल मीडिया पर मस्त युवा

मैल्कम एक्स की एक कहावत है कि शिक्षा भविष्य का पासपोर्ट है क्योंकि कल उन का है जो आज इस के लिए तैयारी करते हैं. लेकिन क्या यह कहावत आज के संदर्भ में सही साबित हो रही है? आज के युवाओं का एजुकेशन सिस्टम और उस का भविष्य सरकार भरोसे है जो लगातार अंधकार की तरफ जा रहा है.

ऐसा इसलिए है क्योंकि एक तरफ तो हम विश्वगुरु बनने की बात करते हैं और दूसरी तरफ हमारी सरकार एजुकेशन बजट लगातार घटाती ही जा रही है. अपने देश की बिगड़ती शिक्षा व्यवस्था पर इस का कोई ध्यान नहीं है. एजुकेशन पर खर्च करने के नाम पर इस के हाथपैर फूल जाते हैं. अब कोई यह बताए कि बिना एजुकेशन पर खर्च किए हम कैसे विश्वगुरु बन सकते हैं?

सरकार क्या कर रही है

केंद्रीय बजट 2024-25 का जो एजुकेशन बजट आया है उस में एजुकेशन के लिए जो पैसा अलौट किया गया है वह पिछले साल के मुकाबले कम था. यह बजट शिक्षा में सुधार के वादे तो करता है लेकिन उन्हें पूरा करने में विफल नजर आता है.

वैसे भी हमारे मौजूदा प्रधानमंत्री वादा करने में तो नंबर वन हैं ही. लेकिन वाकई यह बजट शिक्षा के कई ऐसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में कमजोर पड़ता नजर आता है जो इस क्षेत्र की बढ़ती मांगों और अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए जरूरी थीं.

जैसे कि भारत में काफी समय से एजुकेशनिस्ट और स्टूडेंट और्गेनाइजेशंस डिमांड कर रहे हैं कि यहां का एजुकेशन बजट 6 फीसदी से ज्यादा बढ़ाया जाए लेकिन अभी भी एजुकेशन बजट 2-3 फीसदी के आसपास ही है. जितनी डिमांड है, हम उस का आधे से भी कम एजुकेशन पर खर्च कर रहे हैं.

आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में शिक्षा पर मात्र 2.7 फीसदी आवंटन बताया गया था, जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति या एनईपी 2020 की 6 फीसदी की सिफारिश से काफी कम है. यह कम खर्च सीधे शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित करता है और इस से सार्वजनिक शिक्षा के संस्थानों को गंभीर संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ेगा. वैश्विक स्तर पर हमारे देश के शीर्ष 200 में केवल 3 विश्वविद्यालय शामिल हैं. पर्याप्त निवेश के बिना भारत के एजुकेशन सिस्टम का अपनी एक अलग पहचान बनाना मुश्किल है.

Denne historien er fra September 2024-utgaven av Mukta.

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