खतियान पर घमासान
DASTAKTIMES|February 2023
राज्यपाल के निर्णय के बाद कुछ अन्य राज्यों की स्थानीय नीति का भी अध्ययन किया जा रहा है। सरकार इस मुद्दे पर मंत्रियों, विधायकों व वरिष्ठ आइएएस अधिकारियों से मंत्रणा भी कर रही है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का साफ निर्देश है कि 1932 खतियान को सरकार हर हाल में लागू करेगी। इस कारण सरकार इसे पुख्ता बनाने में जुटी है दोबारा जब विधेयक राज्यपाल के पास भेजा जाए, तो वापसी की गुंजाइश न रहे।
उदय चौहान
खतियान पर घमासान

1932 खतियान आधारित स्थानीयता विधेयक राज्यपाल द्वारा वापस किये जाने के बाद राज्य सरकार अब एक बार फिर इस पर मंथन करने में जुट गई है। विधेयक को दोबारा राज्यपाल के पास भेजने से पहले सरकार विधि-विशेषज्ञों से राय लेगी। राज्यपाल ने पूर्व में विधेयक की वैधानिकता पर गंभीरतापूर्वक विचार करने का सुझाव सरकार को देते हुए विधेयक को वापस कर दिया है। उन्होंने विधेयक संविधान अनुरूप बनाने का सुझाव दिया था। अब सरकार चाहती है कि इसमें कोई कमी न रह जाये। इस कारण महाधिवक्ता से लेकर विधि विशेषज्ञों से राय ली जाएगी। राज्यपाल के निर्णय के बाद कुछ अन्य राज्यों की स्थानीय नीति का भी अध्ययन किया जा रहा है। सरकार इस मुद्दे पर मंत्रियों, विधायकों व वरिष्ठ आइएएस अधिकारियों से मंत्रणा भी कर रही है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का साफ निर्देश है कि 1932 खतियान को सरकार हर हाल में लागू करेगी। इस कारण सरकार इसे पुख्ता बनाने में जुटी है दोबारा जब विधेयक राज्यपाल के पास भेजा जाए, तो वापसी की गुंजाइश नहीं रहे। बता दें कि हेमंत सरकार की ओर से पारित 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति से संबंधित विधेयक को राज्यपाल रमेश बैस ने यह कहकर लौटा दिया कि दोबारा समीक्षा करें। मुख्यमंत्री इस वक्त खतियानी जोहार यात्रा में हैं और राज्यभर में इस यात्रा के जरिए लोगों को बता रहे हैं कि सरकार ने 1932 आधारित स्थानीय नीति बना दी है।

ऐसे में राज्यपाल की तरफ से इस विधेयक को लौटाना बड़ा कदम माना जा रहा है। 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति को लेकर राज्य में न सिर्फ राजनीतिक पार्टियां बल्कि राजनीतिक पार्टी में शामिल एक दल के नेताओं में भी मतभेद है। 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति को

Denne historien er fra February 2023-utgaven av DASTAKTIMES.

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बहुत जल्द अमेरिका की राष्ट्रीय खुफिया एजेंसियों की कमान नवनियुक्त निदेशक तुलसी गबाई के हाथ में होगी। अमेरिका की पहली हिंदू सांसद तुलसी का आरएसएस और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से पुराना रिश्ता रहा है। संघ परिवार से जुड़े भारतीय मूल के अमेरिकी हिंदू नागरिक उनके लिए हर चुनाव में लाखों डालर का चंदा जुटाते हैं। आरएसएस के इसी दुलार के कारण अमेरिका में तुलसी 'प्रिंसेज ऑफ द आरएसएस' के नाम से चर्चित हैं। पहले तुलसी का डेमोक्रेटिक पार्टी छोड़ना फिर अचानक डोनाल्ड ट्रम्प को समर्थन देना और फिर रिपब्लिकन पार्टी का दामन थामकर इस मुकाम तक पहुंचना हॉलीबुड के किसी हाई प्रोफाइल पॉलिटिकल ड्रामे से कम नहीं। भारतीय मामलों में अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की बेवजह 'अति सक्रिय' होने के बाद अचानक खुफिया एजेंसियों की कमान तुलसी गबार्ड को दिए जाने को भारत के कूटनीतिक दांव के रूप में देखा जा रहा है।

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