बाहुबली अतीक अहमद राजनैतिक संरक्षण में फलाफूला था। दहशत के बल पर सांसद और पांच बार विधायक का चुनाव जीता था, लेकिन प्रदेश में योगी सरकार बनने के बाद उसके बुरे दिन शुरू हो गए थे। इसी के बाद 28 मार्च 2023 को जब कोर्ट द्वारा उसके कर्मों का हिसाब किया गया तो उसके साथ उसके उस एक भाई के अलावा कोई मौजूद नहीं था, जो स्वयं उमेश पाल अपहरण कांड में आरोपी था और कोर्ट के कटघरे में खड़ा था।
समाजवादी पार्टी का दामन थाम कर एक मामूली गुंडे से पूर्वांचल का खूंखार अपराधी बनने तक का 'सफर' तय करने वाला अतीक अहमद आखिरकार कानून के शिकंजे में आ ही गया। 2005 में बसपा शासनकाल में ही पार्टी के विधायक राजू पाल की हत्या करके सुर्खियों में आने वाला अतीक अहमद भले ही राजू पाल हत्याकांड में सजा नहीं पाया हो, लेकिन इस हत्याकांड में अतीक अहमद के खिलाफ गवाही देने वाले उमेश पाल के अपरहण करने और उसको बुरी तरह से मारने-पीटने के जुर्म में प्रयागराज की एमपी/एमएलए कोर्ट ने अतीक सहित तीन लोगों को उम्र कैद की सजा सुनाकर अतीक के दहशत के साम्राज्य को पूरी तरह से धवस्त कर दिया। अतीक को सजा हुई इसके लिए योगी सरकार की वह वचनबद्धता भी काम आई जिसमें सरकार द्वारा अपराध के मामले में जीरो टालरेंस की नीति पर चल रही थी। उसके द्वारा अपराधियों को मिट्टी में मिला देने की बात कही जा रही थी। परिणाम यह हुआ कि जिस अतीक अहमद के सामने कोई जुबान तक नहीं हिला पाता था, वह जब साबरमती से आकर प्रयागराज की कोर्ट में हाजिर हुआ तो उसके खिलाफ लोगों का गुस्सा चरम पर दिखाई दिया। कोई अतीक को फांसी की देने की मांग कर रहा था तो कोई उसे जूते की माला पहनाने को आतुर था। अतीक जिसके नाम से लोग कांपते थे, जब उसे कोर्ट द्वारा सजा सुनाई गई तो उसके पैर कांपने लगे। वह मुश्किल से खड़ा हो पा रहा था, अपनी दहशत से तमाम लोगों पर जुर्म करने और उन्हें खून के आंसू रुलाने वाले अतीक के आंसू नहीं थम रहे थे। अतीक को बचाने के लिए न कोई राजनैतिक संरक्षण काम आया, न ही उसकी दहशत उसे सजा से बचा पाई।
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बेगम स्वरा का नया लुक चर्चा में
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प्रकृति, संस्कृति और स्त्री का बहुआयामी विमर्श
स्त्री चेतना, पर्यावरण और सामाजिक सरोकारों से जुड़ी सुप्रतिष्ठित लेखिका आकांक्षा यादव के आलेखों का संग्रह 'प्रकृति, संस्कृति और स्त्री' को पढ़ते हुए जहां हम विषयवार उनके विचारों, विवरणों और विवेचनों से प्रभावित होते हैं, वहीं हम निबंध विधा के महत्व को भी जान पाते हैं।
जन-गण-मन का भाग्य विधाता है संविधान
भारतीय गणतंत्र अमर है लेकिन राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा है। न्यायपालिका संविधान की जिम्मेदार संरक्षक है। न्यायपीठ ने प्रशंसनीय फैसले किए हैं। अदालतों में लंबित लाखों मुकदमे 'न्याय में देरी से अन्याय के सिद्धांत' की गिरफ्त में हैं। अनुच्छेद 19 अभिव्यक्ति का स्वातंत्र्य देता है। अनुच्छेद 20 अन्य बातों के अलावा, 'किसी अपराध के लिए किसी व्यक्ति को अपने ही विरुद्ध गवाही देने के लिए बाध्य करने से रोकता' है।
संकट में पाकिस्तानी शिया
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डिजिटल अरेस्ट डर के आगे हार!
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शीतकालीन चारधाम यात्रा में भी गुलजार होगी देवभूमि
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कैसे अमेरिकी जासूसों की चीफ बनी - प्रिंसेज ऑफ द आरएसएस
बहुत जल्द अमेरिका की राष्ट्रीय खुफिया एजेंसियों की कमान नवनियुक्त निदेशक तुलसी गबाई के हाथ में होगी। अमेरिका की पहली हिंदू सांसद तुलसी का आरएसएस और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से पुराना रिश्ता रहा है। संघ परिवार से जुड़े भारतीय मूल के अमेरिकी हिंदू नागरिक उनके लिए हर चुनाव में लाखों डालर का चंदा जुटाते हैं। आरएसएस के इसी दुलार के कारण अमेरिका में तुलसी 'प्रिंसेज ऑफ द आरएसएस' के नाम से चर्चित हैं। पहले तुलसी का डेमोक्रेटिक पार्टी छोड़ना फिर अचानक डोनाल्ड ट्रम्प को समर्थन देना और फिर रिपब्लिकन पार्टी का दामन थामकर इस मुकाम तक पहुंचना हॉलीबुड के किसी हाई प्रोफाइल पॉलिटिकल ड्रामे से कम नहीं। भारतीय मामलों में अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की बेवजह 'अति सक्रिय' होने के बाद अचानक खुफिया एजेंसियों की कमान तुलसी गबार्ड को दिए जाने को भारत के कूटनीतिक दांव के रूप में देखा जा रहा है।
प्रदूषण से सांसत में जान
दिल्ली राजधानी क्षेत्र में आजकल हवा में पीएम 10 का स्तर 318 और पीएम 2.5 का स्तर 177 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से ज्यादा है जिसके फिलहाल कम होने की उम्मीद बेमानी है। जबकि स्वास्थ्य की दृष्टि से पीएम 10 का स्तर 100 से कम और पीएम 2.5 का स्तर 60 से कम ही उचित माना जाता है। खतरनाक स्थिति यह है कि दिल्ली के आसमान पर अब धुंध की परत साफ दिखाई दे रही है।
पीके अपनी पार्टी की रणनीति में हुए फेल
पीके के नाम से मशहूर प्रशांत किशोर ने जनसुराज पार्टी बनाने के करीब 40 दिन बाद अपने प्रत्याशियों को चुनाव लड़ाया। प्रत्याशियों का चयन बहुत सोच-समझ किया गया। पीके की ओर से जीत के दावे भी थे, लेकिन वह परिणाम के रूप में सामने नहीं आ सके। हालांकि, पीके इस बात से थोड़े खुश जरूर होंगे कि तीन सीटों पर जनसुराज के प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहे।