'मुफ्त का चंदन घिस मेरे नंदन...' यह कोई कहावत नहीं लेकिन मुफ्तखोरी करने वालों के ऊपर यह बहुचर्चित कटाक्ष है। सत्ता हासिल करने के लिए लगभग सभी दल मतदाताओं को लुभाने के लिए 'रेवड़ियां' बांटने में कोई गुरेज नहीं करते हैं। चाहे घोषणा पत्र हो या संकल्प पत्र या फिर बात गारंटी के माध्यम से कही जाये, निहितार्थ सभी के एक जैसे हैं। हालांकि जनता भी इस बात से भिज्ञ है कि सत्ता में आने के बाद राजनीतिक दल सरकार के खजाने से ही चुनाव के दौरान किए गए वादों को अमलीजामा पहनाते हैं। लेकिन प्रदेश हो या फिर देश, सरकारी खजाने को इससे भारी नुकसान उठाना पड़ता है। इन 'रेवड़ियों' को 'फ्रीबीज' भी कहा जाता है। कुछ राजनीतिक पार्टियां इसके समर्थन में हैं, तो कुछ इसके खिलाफ। जिन पार्टियों को बड़े-बड़े लोकलुभावन वादे करने में ही फायदा दिखता है, वे इसके जारी रहने के पक्ष में खड़ी हैं। जो राजनीतिक दल 'मुफ्त की रेवड़ियों' के पक्ष में हैं, वह इसे अपने तरीके से परिभाषित करते हुए इसे 'लोक कल्याण' करार देते हैं। वहीं कुछ दल इस इस प्रकार की रणनीति को बड़ी बीमारी बता रहे हैं । इस तरह की मांग भी उठ रही है कि चुनाव से से पहले वोटरों को लुभाने के लिए मुफ्त रेवड़ियां देने का वादा करने वाली पार्टियों की मान्यता खत्म की जानी चाहिए। इसके पीछे तर्क है कि अगर चुनाव से पहले रुपये-पैसे बांटना अपराध है, तो जीतने के बाद भी ऐसा करना अपराध है। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस पर अपना मत व्यक्त करते हुए कह चुके हैं कि 'रेवड़ी कल्चर' देश के आर्थिक विकास में बाधा है। उधर, देश की सबसे बड़ी अदालत को राजनीतिक दलों का यह कदम कतई नहीं सुहाया है। पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश, राजस्थान, केन्द्र सरकार, चुनाव आयोग और रिजर्व बैंक को नोटिस भेजा है। मुफ्त की चुनावी सौगातों से जुड़ी एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने जानना चाहा कि क्या ऐसे चुनावी वादों को कंट्रोल किया जा सकता है? लेकिन अब तक कहा जाता रहा है कि इश्क और जंग में सब जायज है। वहीं अब इसमें इश्क, जंग के साथ राजनीति भी जुड़ गया है।
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मूल परंपरा से संवाद जरूरी
संगति में काल में न कुछ प्राचीन है और न ही आधुनिक। हम मनुष्य ही काल प्राचीनता या नवीनता के विवेचन करते हैं। प्राचीनता ही अपने अद्यतन विस्तार में नवीनता और आधुनिकता है। हम आधुनिक मनुष्य अपने पूर्वजों का ही विस्तार हैं। वे भी अपनी विषम परिस्थितियों में अपने पूर्वजों से प्राप्त जीवन मूल्यों को झाड़पोछकर अपने समय की आधुनिकता गढ़ रहे थे। ऐसा कार्य सतत् प्रवाही रहता है।
भारत और रूस संबंधों को नई मजबूती
तीसरी बार पीएम पद संभालने के बाद मोदी ने अपने पहले विदेश दौरे के लिए रूस जाने का फैसला किया। गौरतलब है कि जिस वक्त मोदी रूस के दौरे पर थे उस वक्त पश्चिमी देशों के सैन्य गठबंधन, नेटो की बैठक की तैयारी हो रही थी । अमेरिका में होने वाली नेटो की इस बैठक में यूक्रेन के लिए सहयोग और नेटो की उसकी सदस्यता अहम मुद्दा था। जानकार मानते हैं कि मोदी का रूस दौरा पश्चिमी देशों को इशारा है कि वह अपनी रक्षा और अन्य जरूरतों के लिए पूरी तरह पश्चिमी देशों पर निर्भर नहीं कर सकता।
भाजपा का एसटी सीटों पर फोकस
भाजपा ने आगामी चुनाव को लेकर भी अपना एजेंडा तय कर लिया है। पार्टी का मानना है कि भ्रष्टाचार और बांग्लादेशी घुसपैठ दो अहम मुद्दे हैं जिन पर इंडिया गठबंधन को घेरा जा सकता है। ऐसा माना जा रहा है कि संथाल परगना सहित कई ऐसे इलाके हैं जहां एक समुदाय के वोटरों की संख्या में बड़ी वृद्धि हुई है। इसके साथ ही बैठक में प्रदेश भाजपा के सिर्फ नेताओं को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शीघ्र झारखंड दौरे के संकेत दिए गए हैं वहीं, इसकी भनक राज्य सरकार को भी मिली है।
प्रशांत किशोर का पैंतरा
पीके राजनीतिक सलाहकार के रूप में जाने जाते हैं, हालांकि राजनेता के रूप में जदयू में रहे, लेकिन बहुत दिनों तक नीतीश कुमार के साथ नहीं चल सके। नीतीश ने पीके को जदयू का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया था। तब उनकी पार्टी में नंबर दो की हैसियत थी। बाद में जदयू से किनारे लगा दिए गए। अब वे पूरी तरह से एक राजनेता के रूप में लोगों के सामने आने को तैयार हैं।
खेलों के महाकुम्भ में भारत
भारत ने टोक्यो ओलंपिक में सात पदक जीते ये जो उसका ओलंपिक खेलों में अभी तक सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है और भारतीय खिलाड़ी इसमें सुधार करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। केंद्र सरकार ने भी भारतीय खिलाड़ियों का खूब ध्यान रखा है। पेरिस ओलंपिक की तैयारी के लिए उसने करीब पौने पांच अरब रुपये खिलाड़ियों पर खर्च किए हैं। जिस-जिस खिलाड़ी ने देश-विदेश जहां भी ट्रेनिंग की मांग की, उसे वहां भेजा गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पेरिस जाने से पहले खिलाड़ियों से बात कर उनका हौसला बढ़ाया। किसी भी तरह से कोई कसर नहीं छोड़ी गई है।
सपा की चुनौती सामने खड़ी बीजेपी या पर्दे के पीछे छिपी कांग्रेस
2027 में सपा-कांग्रेस साथ-साथ रहेंगे यह तो अभी नही कहा जा सकता है, क्योंकि सपा यदि कांग्रेस के साथ चलती है तो इससे सिर्फ कांग्रेस को ही फायदा होता है। इस बात का अहसास अखिलेश यादव को भी होगा, भले ही वह इस संबंध में सार्वजनिक रूप से कुछ नहीं बोल रहे हैं। बात यहीं तक सीमित नहीं है। दरअसल, राहुल गांधी यूपी में अपने गठबंधन सहयोगी अखिलेश यादव के सामने बड़ी सियासी लाईन खड़ी करना चाहते हैं। यही बात सपा के थिंक टैंक को परेशान कर रही है, लेकिन इस समय अखिलेश का सारा ध्यान भाजपा की ओर लगा है।
जीईपी लागू करने वाला पहला राज्य बना उत्तराखंड
उत्तराखंड सरकार ने सूबे में सबसे पहले समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लागू कर सामाजिक न्याय की दिशा में ऐतिहासिक निर्णय लिया और अब सकल पर्यावरणीय उत्पाद (जीईपी) को लागू कर पर्यावरण स्वास्थ्य की दिशा में क्रांतिकारी कदम उठाया है।
सीएम धामी के प्रदर्शन से केन्द्रीय नेतृत्व संतुष्ट
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने यूसीसी को लागू करने, सतत विकास सूचकांक में पहला स्थान प्राप्त करने, पर्यटन व तीर्थाटन को आर्थिक समृद्धि का आधार बनाने सहित सुशासन पर केन्द्रित मॉडल को प्रस्तुत किया। सीएम धामी ने बताया कि उनकी सरकार अर्थव्यवस्था को दोगुना करने के साथ ही पर्यावरणीय चिंताओं को दर करने में भी क्रांतिकारी कदम उठा रही है। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करना भी प्राथमिकता में है।
आपदा प्रभावित क्षेत्र में डटे सीएम धामी
पीएम मोदी का मिल रहा पूरा सहयोग
सीएम धामी के मुरीद हुए तीर्थपुरोहित
उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी तीर्थपुरोहितों के चहेते बन गए हैं। तीर्थपुरोहितों का मानना है कि सीएम के प्रयास से चारधाम यात्रा व्यवस्था इस बार अब तक ऐतिहासिक रही है। दूसरी ओर हाल ही में दिल्ली की एक संस्था द्वारा केदारनाथ मंदिर की प्रतिकृति बनाने की बात सामने आई तो मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने न केवल इसे लेकर हस्तक्षेप किया बल्कि उन्होंने कैबिनेट में ही नियम लाकर कि देश में कहीं भी चारधाम से मिलते-जुलते ट्रस्ट या मंदिर नहीं बनाए जाएंगे। इस फैसले के बाद तीर्थ पुरोहित सीएम धामी के मुरीद हो गए हैं।