जब 1947 में भारत आजादी के उल्लास में था, उसी समय हिंदी सिनेमा की तत्कालीन स्टार गायिका - अभिनेत्री नूरजहां पाकिस्तान चली गईं. बहुत-से दूसरे लोग विभाजन के बाद लाहौर से बंबई आ गए और बहुतसे बंबई में ही बने रहे. इनमें फिल्म जुगनू ( 1947 ) में नूरजहां के सह-कलाकार रहे यूसुफ खान उर्फ दिलीप कुमार भी थे, जो आगे चल कर भारत के सर्वश्रेष्ठ अभिनेताओं में से एक के रूप में स्थापित हुए.
आजादी के समय भारतीय फिल्म उद्योग की उम्र तीन दशक की हो चुकी थी, पर आजाद भारत बनने के साथ ही फिल्म निर्माताओं में देशभक्ति का भाव प्रबल हो उठा. शहीद (1948), नया दौर (1957) और इंसान जाग उठा (1958) जैसी फिल्मों में इस तथ्य को देख जा सकता है. अपने पैरों पर खड़ा होने की कोशिश कर रहे राष्ट्र में सुखांत वाले किस्सों और कड़वी सामाजिक-आर्थिक सचाइयां उजागर करती कहानियों के बीच एक संतुलन साधा गया था. सत्यजीत रे की पहली फीचर फिल्म पथेर पांचाली (1955) के माध्यम से भारतीय सिनेमा दुनिया के नक्शे पर पहुंचा.
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