अचानक हवा में जेट इंजनों की दहाड़ गूंज रही है. इस सारी गतिविधि के केंद्र में भारत की वायुशक्ति के विस्तार की योजना और देश में बने लड़ाकू विमानों के लिए जरूरी शक्ति के इंजन बनाने की बहुत जरूरी मांग है.
पिछले हफ्ते रक्षा विमान बनाने वाली बड़ी अमेरिकी कंपनी बोइंग ने नई दिल्ली में ऐलान किया कि कंपनी को अगले दस साल में 3.6 अरब डॉलर के कारोबार की उम्मीद है जिससे भारतीय एयरोस्पेस और रक्षा उद्योग को लाभ होगा. इसके तहत, एफ/ए18 सुपर हॉर्नेट भारत का अगला नौसैन्य विमानवाहक पोत आधारित लड़ाकू विमान होगा. फ्रांसीसी कंपनी दासो एविएशन ने अमेरिका के सुपर हॉर्नेट के मुकाबले राफेल एम जेट विमान को मैदान में उतारा है.
फ्रांस के सैफ्रान ग्रुप के सीईओ ओलिवियर एंड्रीज जुलाई के पहले हफ्ते में नई दिल्ली में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मिले और उन्हें उन्नत जेट इंजन के सह-विकास और सह-उत्पादन के लिए कंपनी के लंबे वक्त के लक्ष्यों से अवगत करवाया. सैफ्रान दुनिया की सैन्य और व्यावसायिक जेट इंजन के ओरिजिनल इक्विपमेंट मैन्यूफैक्चर्स या मूल उपकरण बनाने वाली बड़ी कंपनियों में से एक है और राफेल विमानों के लिए इंजन बनाती है. इसका स्नेक्मा एम88 इंजन का अधिकतम थ्रस्ट या आगे धकेलने वाला बल करीब 75 केएन (किलोन्यूटन) है.
भारतीय वायु सेना (आइएएफ) ने 114 बहुउद्देश्यीय लड़ाकू विमानों की तलाश शुरू की है, तो नौसेना को करीब 30 विमानवाहक पोत आधारित लड़ाकू विमानों की जरूरत है-कुल मिलाकर इनका मूल्य करीब 20 अरब डॉलर है. आइएएफ को अपने बेड़े के लिए भारत में बने 600 लड़ाकू विमानों की भी जरूरत होगी और 1.5 इंजन/स्थापित इंजन का स्पेयर या अतिरिक्त अनुपात मान लें तो इन सबके लिए 2,300 से ज्यादा इंजनों की जरूरत पड़ेगी. इतना ही नहीं, 282 जेट के सुखोई बेड़े को भी आने वाले वर्षों में इंजन जोड़ने की जरूरत पड़ेगी. अगर इंजन आयात किए जाते हैं तो भारत को अपनी अंटी से बहुत ज्यादा विदेशी मुद्रा ढीली करनी होगी.
Denne historien er fra September 14, 2022-utgaven av India Today Hindi.
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