यह एक कामकाजी दिन है, फिर भी मध्य प्रदेश के विदिशा जिले के कस्बे लटेरी का वन विभाग का रेंज कार्यालय वीरान नजर आता है. एक युवक की मौत के मामले में विभाग के कर्मचारियों पर हत्या का मामला दर्ज होने के लगभग 20 दिन बाद लगता है। कि चीजें हमेशा के लिए बदल गई हैं. जिस सरकार के जंगलों की रक्षा करनी है और जिस भील आदिवासी समुदाय से मारा गया युवक ताल्लुक रखता था, दोनों से हतोत्साहित और भयभीत रेंज के कर्मचारियों ने वर्दी पहनना बंद कर दिया है. उन्होंने बंदूकें भी तब तक के लिए साथ रखने से मना कर दिया है जब तक कि सरकार उन्हें कुछ कानूनी सुरक्षा की गारंटी नहीं देती.
लटेरी मध्य प्रदेश में लकड़ी की तस्करी के सबसे बड़े केंद्रों में से एक है. आजादी से पहले सिंधिया रियासत का हिस्सा रहे विदिशा जिले में राज्य के कुछ बेहतरीन जंगल थे जिनमें मुख्यतः सागौन के पेड़ थे. लेकिन यह पुरानी बात है. लालच और राज्य के भीतर और बाहर लकड़ी की बढ़ी मांग के कारण वर्षों से पेड़ों की बड़े पैमाने पर हुई कटाई ने वनों को नष्ट कर दिया है. सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्षी कांग्रेस दोनों ही लकड़ी तस्करों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं चाहतीं और इसके कारण स्पष्ट रूप से राजनीतिक हैं. बल्कि वे तो जंगलों की रक्षा में तैनात एजेंसियों पर ही सख्ती की मांग कर रही हैं.
9 अगस्त की रात करीब नौ बजे लटेरी साउथ रेंज ऑफिसर (आरओ) विनोद सिंह को सूचना मिली कि रेंज मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर खट्टीपुरा गांव में लकड़ी तस्कर सक्रिय हैं. सिंह, लटेरी से सटे क्षेत्र के रेंज ऑफिसर अभिजीत स्वामी से भी मदद लेने के बाद, दो वाहनों और पांच अन्य कर्मचारियों के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हुए. उनमें से एक कर्मचारी के पास सरकारी मॉसबर्ग टैक्टिकल पंप-एक्शन शॉटगन थी, जिसमें नंबर 1 छर्रे वाली गोली भरी थी. खट्टीपुरा में, टीम ने लकड़ी तस्करों के 10 मोटरसाइकिलों के काफिले को रोका, जिन पर सागौन के लठ्ठे लदे थे. वन विभाग का दावा है कि रोके जाने पर तस्करों ने उन पर पथराव शुरू कर दिया और उन्हें आत्मरक्षा में गोलियां चलानी पड़ीं जबकि तस्करों का आरोप है कि उन पर घात लगाकर गोलीबारी की गई. तस्करों में से एक 32 वर्षीय चैन सिंह की मौके पर ही मौत हो गई और पांच अन्य घायल हो गए, जिनमें से उसके तीन सगे भाई और दो चचेरे भाई हैं.
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