भारत ने सितंबर 2021 में स्पेन की एयरबस डिफेंस ऐंड स्पेस, एसए कंपनी के साथ भारतीय वायु सेना के लिए मध्यम वजन के 56 सी-295 परिवहन विमान खरीदने और बनाने के सौदे पर दस्तखत किए थे. तभी से कयास लगाए जा रहे थे कि कारखाना भारत में कहां लगाया जाएगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 30 अक्तूबर को चुनाव की देहरी पर खड़े गुजरात के वडोदरा में निर्माण इकाई की आधारशिला रखने के साथ इन अटकलों पर विराम लग गया. रक्षा सचिव डॉ. अजय कुमार ने कहा कि करार के मुताबिक 16 विमान बने-बनाए आएंगे और 40 विमान भारत में बनाए जाएंगे, जिनका निर्माण एयरबस और भारतीय विमान कॉन्ट्रैक्टर यानी टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड (टीएएसएल) की अगुआई में टीएएसएल और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) के संयुक्त उद्यम के माध्यम से किया जाएगा. परियोजना कुल 21,935 करोड़ रुपए की है. अहम बात यह कि पहली बार भारत में निजी कंपनी सैन्य विमान बनाएगी.
दरअसल, टाटा-एयरबस संयुक्त उद्यम में यह जो 'निजी' है, इसे ऐतिहासिक बदलाव माना जा रहा है. प्रधानमंत्री की तरह कई और लोगों को भी उम्मीद है कि इससे भारत में विमान निर्माण का क्षेत्र एक नई उड़ान भरने को तैयार हो जाएगा. फिलहाल देश में बेंगलूरू स्थित सरकार के मालिकाना हक वाली एयरोस्पेस और डिफेंस कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) का संपूर्ण दबदबा है. सवारी और मालवाहक विमानों की बढ़ती मांग की तरफ इशारा करते मोदी ने वडोदरा में कहा कि भारत को अगले 15 साल में 2,000 से ज्यादा विमानों की जरूरत होगी.
एलाइड मार्केट रिसर्च की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया भर में सैन्य परिवहन विमानों का बाजार 2030 तक 45 अरब डॉलर पर पहुंचना तय है. टाटा-एयरबस कारखाने को आइएएफ की तरफ से ऑर्डर किए गए विमान 2031 तक बनाकर देने हैं और उसके बाद वह विमान निर्यात करने के लिए स्वतंत्र है.
अब जब सरकार ने विमान निर्माण के दरवाजे निजी कंपनियों के लिए खोल दिए हैं, नीति निर्माता अपनी सारी जरूरतों के लिए शायद एचएएल का मुंह नहीं ताकेंगे, उनके पास दूसरे विकल्प भी होंगे. जिस तरह परिवहन विमानों के लिए टाटा को चुना गया है, लड़ाकू विमान बनाने के लिए दूसरी फर्म को चुना जा सकता है. इसी तरह हेलिकॉप्टर और यूएवी (मानवरहित हवाई वाहन) बनाने का काम अलग-अलग कंपनियों को सौंपा जा सकता है.
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