वरुण और ग़ज़ल से मुलाकात गुरुग्राम के गोल्फ लिंक इलाके में द अरालिआज सोसाइटी में उनके घर पर होती है. कुछ मिनट के इंतजार के बाद लाल रंग के बिजनेस सूट में ग़ज़ल लॉबी में आती हैं और देरी के लिए माफी मां एक आम गृहिणी की तरह मुस्कुराते हुए कहती हैं, "पेट्स ऐंड किड्स !" वरुण और ग़ज़ल की सफलता की कहानी इसी अंदाज के साथ शुरू होती है.
बातचीत में जाहिर होता है कि दोनों ही मध्यमवर्गीय परिवारों के ऐसे होनहार बिरवान रहे हैं जिन्हें आइआइटी और आइआइएम जैसे संस्थानों में भेजने के सपने परिवार देखा करते हैं. चंडीगढ़ में पली-बढ़ी ग़ज़ल ने बीसीए की पढ़ाई की और वरुण ने दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई. वरुण बताते हैं, "लेकिन जल्दी ही मुझे समझ आ गया था कि टरबाइन और कल-पुर्जों में मुझे दिलचस्पी नहीं थी. "एक्सएलआरआई, जमशेदपुर से एमबीए करने के बाद उन्होंने यूनिलीवर और फिर कोका-कोला में मार्केटिंग के क्षेत्र में काम किया. ग़ज़ल ने कॉलेज खत्म होने से पहले ही एनआइआइटी में पढ़ाना शुरू कर दिया था. लेकिन जल्द ही परिवार ने उनका रिश्ता वरुण के साथ तय कर दिया.
मामाअर्थ की शुरुआत के बारे में वरुण बताते हैं, "सब कुछ अच्छा चल रहा था. मैं बड़े ब्रांड्स के साथ काम कर रहा था. गजल न्यूयॉर्क अकेडमी ऑफ आर्ट से पढ़कर लौटी थीं. हम खूब घूमते थे, पब जाते थे, बंजी जंपिंग जैसी मौजमस्ती वाली चीजें करते थे. मगर अगस्त्य के हमारे जीवन में आने के बाद हम पहले जैसे नहीं रहे. बच्चे के लिए हमें सब कुछ बहुत सोचसमझ कर चुनना था."
Denne historien er fra November 30, 2022-utgaven av India Today Hindi.
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