मंच पर उदात्त मूल्यों की तलाश
India Today Hindi|January 04, 2023
पहले भारतीय मिथकों, परंपराओं से जुड़े नाटक रचे गए और फिर कुछ आधुनिक दृष्टिकोण वाले प्रयोग हुए. भारतीय नाटकों ने सार्वभौमिकता की गहरे जाकर तलाश की है
देवेंद्र राज अंकुर
मंच पर उदात्त मूल्यों की तलाश

आजादी के पचहत्तर वर्षों में से कुल जमा दस भारतीय नाटकों का चयन करना सचमुच में बहुत ही मुश्किल था, फिर भी मैंने एक कोशिश जरूर की है. ये सभी नाटक हमारे यहां की पांच भाषाओं- बोलियों का प्रतिनिधित्व करते हैं, किसी एक भाषा की रचना होने के बावजूद ये अलग-अलग भाषाओं में अनूदित और मंचित होते आए हैं. मेरा ख्याल है कि ये तथ्य हमें एक तार्किक और भरोसेमंद पैमाना देते हैं, यह जांचने का कि ये नाटक विषयवस्तु और नाटकीयता के स्तर पर सार्वभौमिक असर छोड़ पाने में कामयाब रहे हैं. संयोगवश यह भी एक अहम पहलू है कि यदि सबसे ज्यादा बार खेले गए नाटकों की एक सूची तैयार की जाए तो यही नाटक पहले दस नाटकों के क्रम में आएंगे.

आइए, काल-क्रम की दृष्टि से उन नाटकों पर एक संवाद किया जाए.

सबसे पहले हम धर्मवीर भारती के काव्य नाटक अंधा युग का नाम लेना चाहेंगे. द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका की पृष्ठभूमि में पौराणिक ग्रंथ महाभारत को आधार बनाकर मूल रूप से एक रेडियो नाटक के रूप में लिखा गया था यह नाटक. 1954 में प्रकाशित अंधा युग भीषण युद्ध के बाद की निराशा, हताशा और ईश्वर के प्रति अनास्था का जीवंत दस्तावेज है. यह भी एक संयोग ही है कि इसी के आसपास फ्रेंच भाषा में लिखा गया चर्चित नाटककार सेम्युल बैकेट का नाटक वेटिंग फॉर गोदो भी इसी कथ्य को सामने लाता है. एक नाटक में अगर ईश्वर की मृत्यु है तो दूसरे में उसकी प्रतीक्षा है और वह कभी नहीं आता. ऐसे शाश्वत कथ्य के कारण अंधा युग आज तक लगातार हर भाषा में मंचित होता आ रहा है.

शाश्वत कथ्य की बात करें तो 1958 में रचित और प्रकाशित मोहन राकेश का आषाढ़ का एक दिन भी कहीं पीछे नहीं ठहरता. एक कलाकार के लिए सत्ता या फिर अपनी कला में से किसी एक का चयन ऐसा जटिल प्रश्न है जो हमेशा उसके सामने उठता रहता है. नाटक के नायक कवि कालिदास के बहाने आज के कलाकार या रचनाकार का आंतरिक द्वंद्व क्या आज के समय में और ज्यादा मुखर नहीं हो उठा है ? राकेश का ही एक अन्य नाटक आधे-अधूरे बेशक समय के साथ बासी पड़ जाए लेकिन आषाढ़ का एक दिन सदा उतना ही सार्थक और समकालीन रहेगा.

Denne historien er fra January 04, 2023-utgaven av India Today Hindi.

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