उदय शंकर
(1900-1977)
भारत के लिए वे उस विधा के जनक हैं जिसे आज समकालीन नृत्य कहा जाता है. उदय शंकर को 1930 ही गैर-शास्त्रीय के दशक में में भारतीय नृत्य की शब्दावली गढ़ने का श्रेय दिया जाता है - जो उन्होंने बैले नर्तकी अन्ना पावलोवा की मंडली के साथ काम करने के दौरान पश्चिमी शैलियों से रू-ब-रू होने के बाद किया. उन्होंने शास्त्रीय रूपों को दरकिनार नहीं किया बल्कि क्षेत्रीय और शास्त्रीय टेक्स्ट पर निर्भर उस नृत्य को सरल बनाया. अपनी शैली को हिमालय की गोद अल्मोड़ा में उन्होंने सान पर चढ़ाया और कइयों को नृत्य सिखाया. फिर वे चेन्नै आ गए जहां नृत्य पर फिल्म कल्पना (1948) बनाई जिसकी शूटिंग सात साल चली. कुछ आखिरी साल उन्होंने कलकत्ता में गुजारे जहां अंतिम कृति मल्टीफॉर्मेट शंकरस्कोप का निर्माण किया. उनकी शैली को शिष्यों सचिन शंकर, नरेंद्र शर्मा और ममता शंकर ने आगे बढ़ाया.
टी. बालसरस्वती
(1918-1984)
परंपरागत देवदासी परिवार में जन्मी बालसरस्वती तंजौर में दरबारी शैली के रूप में संहिताबद्ध मंदिर रूप की अंतिम प्रतिनिधि थीं. वीणा धनम्माल उनकी कुलमाता थीं. उनके परिवार में बेहतरीन संगीतकारों की पूरी वीथिका थी और नृत्य शैली भी खास तौर पर संगीत में ढली थी. मद्रास की जातिवादी सभाओं ने उन्हें नकार दिया, ऐसे में वकील कार्यकर्ता ई. कृष्ण अय्यर, दि म्यूजिक एकेडमी के प्रमुख वी. राघवन और तब एसएनए के प्रमुख मोहन खोकर ने उनकी मदद की. अमेरिका में स्क्रिप्स परिवार उनका सरपरस्त था. जब पश्चिम ने उन्हें हाथोहाथ लिया तो भारत ने भी उनकी अहमियत पहचानी मगर उनका भरतनाट्यम 'बानी' उन्हीं के साथ खत्म हो गया.
राम गोपाल
(1912-2003)
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शब्द हैं तो सब है
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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी सरकार खिन्न और प्रदर्शन करते राज्य के लोगों का भरोसा के लिए अंधाधुंध कदम उठा रही है
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अदाणी जांच में हितों के टकराव के आरोपों में घिरीं और अपने ही स्टाफ में उभरते विद्रोह से सेबी की मुखिया से ढेरों जवाब और खुलासों की दरकार
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अब आई मगरमच्छों की बारी
राजस्थान में 29 जुलाई, 2024 की दोपहर विधानसभा में राजस्थान लोकसेवा आयोग (आरपीएससी) परीक्षा में पेपर लीक को लेकर सियासत गरमाई हुई थी. प्रतिपक्ष के नेता टीकाराम जूली ने पेपर लीक के मामलों को लेकर भजनलाल शर्मा सरकार पर यह आरोप जड़ दिया कि अभी तक सरकार ने छोटी-छोटी मछलियां पकड़ी हैं, मगरमच्छ तो अभी भी खुले घूम रहे हैं. इस हमले का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री शर्मा ने कहा, \"आप बेफिक्र रहिए जल्द ही हम उन मगरमच्छों को भी पकड़ेंगे जो बाहर घूम रहे हैं.\"
नहरें: थीं तो बेशक ये पानी के ही लिए
सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"