वी. शांताराम
(1901-1990)
अदम्य ऊर्जा से ओतप्रोत, हुबली थिएटर में एक दरबान के रूप में दादासाहब फाल्के को मुफ्त में देखते हुए सिनेमा की दुनिया में कदम रखा. मुद्दा आधारित फिल्म बनाने वाले पहले निर्देशक थे, जिसके तहत उन्होंने मिथकीय और ऐतिहासिक कहानियों को नाटकीय अंदाज में पेश किया. इसी लीक पर चलते हुए उन्होंने कई यादगार फिल्में - मानूस (1939), डॉ. कोटनिस की अमर कहानी (1946), दहेज (1950), दो आंखें बारह हाथ (1957) बनाई. झनकारमय संगीत से सजी झनक झनक पायल बाजे (1955) और नवरंग (1959) के साथ एक यू-टर्न आया. नवरंग आंखों की दुर्घटना से उबरे व्यक्ति के लिए रंगों के वैभव को दर्शाती है, दोनों फिल्में उनकी माशूका संध्या का स्तुतिगान हैं.
महबूब खान
(1907-1964)
कभी घोड़े की नाल की मरम्मत करने वाले इस छोटे-मोटे अभिनेता में करीने से सजे-धजे निर्माता-निर्देशक में बदलने का दुस्साहस था. उनकी फिल्मों में ज्यादातर अपने दौर, समाजवादी जमाने की बातें हुआ करती थीं- मदर इंडिया (1957) में इसे सबसे नुमायां अंदाज में जाहिर किया गया था, जो उन्हीं की फिल्म औरत (1940) का रीमेक थी. इसमें नरगिस को उनके करियर की सबसे बढ़िया भूमिका में दिखाने के अलावा, काश्तकारों के रोजमर्रा के संघर्ष को बारीकी से दिखाया गया था, और इसे ऑस्कर के लिए नॉमिनेट किया गया था. महबूब स्टूडियोज के मालिक ने ग्रामीण पृष्ठभूमि पर रूमानी फिल्मों का निर्माण किया. परिष्कृत और आधुनिक लहजे वाली अंदाज (1949) में नरगिस की सगाई राज कपूर से पहले ही हो चुकी थी और प्यार में ठुकराए दिलीप कुमार ने दिलकश अभिनय किया था. पहली बार अमर (1954) में दिलीप को नकारात्मक किरदार के तौर पर पेश किया गया.
कमाल अमरोही
(1918-1993)
Denne historien er fra January 04, 2023-utgaven av India Today Hindi.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent ? Logg på
Denne historien er fra January 04, 2023-utgaven av India Today Hindi.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent? Logg på
शब्द हैं तो सब है
शब्द और साहित्य की जादुई दुनिया का जश्न मनाते लेखक-राजनेता शशि थरूर अपने निबंधों की किताब के साथ हाजिर
अब बड़ी भूमिका के लिए बेताब
दूरदराज की मंचीय प्रतिभाओं को निखारने का बड़ा प्लेटफॉर्म बनकर उभरा एमपीएसडी. नई सोच वाले निदेशक के साथ अब वह एक नई राह पर. लेकिन क्या वह एनएसडी जैसा मुकाम बना पाएगा?
डिजिटल डकैतों पर सख्त कार्रवाई
नया-नवेला जिला डीग तेजी से देश में ऑनलाइन ठगी का केंद्र बनता जा रहा था. राज्य सरकार और पुलिस की निरंतर कार्रवाई की वजह से राजस्थान के इस नए जिले में पिछले छह महीने के दौरान साइबर अपराध की गतिविधियों में आई काफी कमी
सनसनीखेज सफलता
पल में मजाकिया, पल में खौफनाक. हिंदी सिनेमा में हॉरर कॉमेडी फिल्मों का आया नया जमाना. चौंकने-डरने को बेताब दर्शकों के कंधों पर सवार होकर भूतों ने धूमधाम से की बॉक्स ऑफिस पर वापसी
ममता के लिए मुश्किल घड़ी
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी सरकार खिन्न और प्रदर्शन करते राज्य के लोगों का भरोसा के लिए अंधाधुंध कदम उठा रही है
ठोकने की यह कैसी नीति
सुल्तानपुर में जेवर की दुकान में डकैती के आरोपी मंगेश यादव को मुठभेड़ में मार डालने के बाद विपक्षी दलों के निशाने पर योगी सरकार. फर्जी मुठभेड़ एक बार फिर बनी मुद्दा
अग्निपरीक्षा की तेज आंच
अदाणी जांच में हितों के टकराव के आरोपों में घिरीं और अपने ही स्टाफ में उभरते विद्रोह से सेबी की मुखिया से ढेरों जवाब और खुलासों की दरकार
अराजकता के गर्त में वापसी
केंद्र और राज्य के निकम्मेपन से मणिपुर में नए सिरे से उठीं लपटें, अबकी बार नफरत की दरारें और गहरी तथा चौड़ी लगने लगीं, अमन बहाली की संभावनाएं असंभव-सी दिखने लगीं
अब आई मगरमच्छों की बारी
राजस्थान में 29 जुलाई, 2024 की दोपहर विधानसभा में राजस्थान लोकसेवा आयोग (आरपीएससी) परीक्षा में पेपर लीक को लेकर सियासत गरमाई हुई थी. प्रतिपक्ष के नेता टीकाराम जूली ने पेपर लीक के मामलों को लेकर भजनलाल शर्मा सरकार पर यह आरोप जड़ दिया कि अभी तक सरकार ने छोटी-छोटी मछलियां पकड़ी हैं, मगरमच्छ तो अभी भी खुले घूम रहे हैं. इस हमले का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री शर्मा ने कहा, \"आप बेफिक्र रहिए जल्द ही हम उन मगरमच्छों को भी पकड़ेंगे जो बाहर घूम रहे हैं.\"
नहरें: थीं तो बेशक ये पानी के ही लिए
सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"