दस गुणा दस के एक कमरे में एक किनारे पर कुछ बर्तन, कच्चा चूल्हा, छत के नाम पर प्लास्टिक शीट और दरवाजे के नाम पर बोशीदा-से परदे. हल्द्वानी स्टेशन से ठीक सटी हुई झुग्गी-झोपड़ियों की इस बसाहट को यह नाम 'ढोलकिया' यहां के बाशिंदों के पेशे के चलते मिला. यहां रहने वाले ज्यादातर लोग मुस्लिम ढोलकिया समुदाय से हैं. ढोलक बनाना इनका परंपरागत पेशा है. इस बस्ती में संकरीसी गलियो से गुजरते हुए बेहद लाचारगी में कहा गया एक वाक्य आपका पीछा नहीं छोड़ता, "हमको कहीं और जमीन दिला दो."
60 साल के शेरदिल पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, गंगोलीहाट, बागेश्वर के गांव-गांव कंधे पर ढोल लटकाए, पैदल घूमे हैं. यहां का नक्शा उनके पैरों की याददाश्त में दर्ज है. वे कहते हैं, "हमने अपनी सारी जिंदगी यहीं बिताई है. जब उत्तराखंड का आंदोलन हुआ तो हमने भी खूब हिस्सा लिया. इसे अपना मानकर ही किए. लेकिन अब ये लोग कह रहे हैं कि हम बाहरी हैं." शेरदिल उत्तराखंड हाइ कोर्ट के हालिया फैसले की जद में हैं. उत्तराखंड हाइ कोर्ट ने अपने फैसले में हल्द्वानी रेलवे स्टेशन के आस-पास अतिक्रमण हटाने के लिए चार हजार से ज्यादा घरों को हटाने का आदेश दिया है. नैनीताल हाइ कोर्ट के आदेश के खिलाफ बनभूलपुरा के कई स्थानीय निवासियों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी. 5 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश पर रोक लगा दी. इस मामले पर अगली सुनवाई फरवरी में होनी है. इसको लेकर शेरदिल काफी आशंकित हैं. वे कहते हैं, "मेरे बच्चे यहां पैदा हुए और उनके बच्चे भी. अगर ये लोग हमसे हमारा घर ही छीन लेंगे तो हम कहां रहेंगे ?"
शेरदिल जिस ढोलक बस्ती में रहते हैं, वह रेल पटरी के किनारे 800 मीटर चौड़ी और ढाई किलोमीटर लंबी पट्टी के एक हिस्से में आबाद है. बनभूलपुरा नाम के इस इलाके में इसके अलावा गफूर बस्ती और इंदिरा नगर की बड़ी बसाहटें भी हैं और इनमें रहने वाले करीब 4,000 परिवारों को शेरदिल की तरह अपना-अपना घर खाली करने का नोटिस मिला है. इन बस्तियों के उजड़ने का संकट समझने के लिए इनके आबाद होने की कहानी जाननी जरूरी है.
Denne historien er fra January 18, 2023-utgaven av India Today Hindi.
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