कालजयी कुमार गंधर्व की सदी पर
India Today Hindi|April 19, 2023
कुमार गंधर्व तपेदिक की वजह से साढ़े छह वर्ष तक अपनी विधा से दूर रहे, लेकिन जब वापस लौटे तो उनका संगीत पुनर्नवा हो चुका था
राजेश गनोदवाले
कालजयी कुमार गंधर्व की सदी पर

उसी धारवाड़ से जहां की उपज पंडित कुमार गंधर्व थे, आज के दिग्गज गवैये एम. व्यंकटेश कुमार भी आते हैं. वे कुमार गंधर्व के बारे में कहते हैं, "उनके लिए गंधर्व नाम सार्थक है. स्वर गंधर्व थे वे सौ वर्षों में ऐसा एक कलाकार पैदा होता है. उन्होंने संगीत को आध्यात्मिक सुंदरता से जोड़ा था." व्यंकटेश ने यह बात यूं ही नहीं कही.

पद्मविभूषण कुमार गंधर्व को कायदे से सदी का गवैया ही कहना होगा. सार्वजनिक जीवन से संबद्ध कलाकार हमेशा जन स्वीकृति के कारण लोकप्रिय होते आए हैं, वही उनकी असल पूंजी है. बगैर गुणग्राही श्रोताओं के सामने सितारा कलाकार भी जमीन पर सिमट जाता है. कुमार जी के मामले में दो विरले उदाहरण दिखाई पड़ते हैं. अपने श्रोताओं से उन्हें खासा लगाव था. वे उनके मुताबिक महफिल जम न पाने पर अपनी ही इच्छा से दोबारा गाने को तैयार हो जाते थे (रायपुर का ऐसा वाकया काफी चर्चित है). उधर, गुणी सुनने वाले भी उनके पास दौड़े चले आते थे. ऐसे में जब उन्हें याद करने की घड़ी आए तो जन्मशती का महत्व समझना कठिन नहीं.

कुमार गंधर्व मात्र खयाल गायक नहीं, बहुत कुछ थे. यानी अपनी गायिकी से खुद ही जिरह करता हुआ एक विचारवान मानस. खयाल के स्थापित घरानों के समकक्ष अपना नवरूप लेकर छा जाने वाला व्यक्तित्व उनके होने के सौ साल का अवसर अब शुरू हो गया है. ऐसे में देश की संगीत पट्टी, खासकर खयाल गवैयों के गलियारों में जन्म शताब्दी की गूंज बनी रहेगी.

Denne historien er fra April 19, 2023-utgaven av India Today Hindi.

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