कन्याकुमारी से राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा शुरू होने से बहुत पहले पिछले अगस्त में ही कांग्रेस कर्नाटक में शक्ति प्रदर्शन करके चुनावी हरकत में आ गई थी, जिसने राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा के लिए खतरे की घंटी बजा दी थी. मौका पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की 75वीं सालगिरह का था, जिसके लिए उनके वफादारों ने दावणगेरे में रैली का आयोजन किया. इस तरह की रैली हाल के सालों में नहीं देखी गई थी. भीड़ इस कदर उमड़ी कि मध्य कर्नाटक के इस कस्बे से गुजरने वाला हाइवे जाम हो गया. अलबत्ता रैली से पहले कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व एक ही अहम बात को लेकर सतर्क था, जो कर्नाटक में दोबारा सत्ता हासिल करने की कोशिश से पार्टी का ध्यान बंटा सकती थी. वह थीसिद्धारमैया और राज्य कांग्रेस अध्यक्ष डी. के. शिवकुमार के बीच महत्वाकांक्षा की होड़.
3 अगस्त को सिद्धारमैया का जन्मदिन को चतुराई से पार्टी के आयोजन में बदल दिया गया, जिसमें 60 वर्षीय शिवकुमार ने अपने वरिष्ठ सहयोगी का हाथ थामा. राहुल गांधी सहमति में मुस्कराते हुए देख रहे थे, उन्होंने दोनों को एक दूसरे के गले मिलने का इशारा किया. कांग्रेस में सबसे बड़ा कौतूहल कोई है तो वह मुख्यमंत्री बनने के आकांक्षी इन दोनों नेताओं के बीच होड़ है, भले ही वे मेलजोल की छवि बनाए रखने के लिए कितना भी एहतियात बरतें अहम बात यह है कि देश में दूसरी जगहों पर अपनी तमाम जद्दोजहद के बावजूद यह कर्नाटक ही है जहां कांग्रेस अपने पत्ते सही खेले तो उसके लिए फिर से सत्ता हासिल करने का मौका बन सकता है. शिवकुमार के लिए, जिन्हें भाजपा के हाथों कांग्रेस- जनता दल (सेक्यूलर) की गठबंधन सरकार गिराए जाने के एक साल बाद 2020 में राज्य अध्यक्ष की कुर्सी से नवाजा गया, यह बेहद अहम वक्त है, जब 10 मई को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए एक महीने से भी कम वक्त बचा है.
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