लोकसभा चुनाव 2019 से ठीक पहले दो ड्रामा फिल्में आईं. पहली द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर, जो संजय बारू की इसी नाम की किताब पर आधारित थी और जिसमें एक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह (अनुपम खेर) को गांधी परिवार के आज्ञाकारी के तौर पर पेश किया गया. दूसरी पीएम नरेंद्र मोदी (विवेक ओबेरॉय) की ठकुरसुहाती में खराब ढंग से बनी फिल्म थी. दोनों का बॉक्स ऑफिस पर भट्टा बैठ गया. चार साल बाद अब जब आम चुनाव में 14 महीनों से भी कम का समय है, दर्शक इतना ही विवाद या चर्चा पैदा करने वाली सियासी फिल्मों के हमले की उम्मीद कर सकते हैं.
इनमें से दो में भारत की अपनी लौह महिला इंदिरा गांधी की तस्वीर उकेरी जाएगी. पहली इमरजेंसी (रिलीज की तारीख का ऐलान अभी होना है) कंगना रनौत ने प्रोड्यूस और डायरेक्ट की है और अदाकारी भी की है. दूसरी, मेघना गुलजार के निर्देशन में बनी सैम बहादुर यानी भारत के पहले फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की बायोपिक है, जिसके लिए फातिमा सना शेख ने बाल सफेद किए हैं. यहां तक कि विद्या बालन भी उनका किरदार अदा करने को बेकरार बताई जाती हैं, हालांकि वे ऐसा वेब सीरीज में कर रही हैं. दिसंबर में अटल बिहारी वाजपेयी की सालगिरह के वक्त उनकी बायोपिक मैं अटल हूं आएगी जिसमें पंकज त्रिपाठी ने कवि प्रधानमंत्री का किरदार निभाया है. अलबत्ता जिस एक फिल्म पर विपक्ष और खासकर कांग्रेस की नजरें टिकी होंगी, वह है स्वातंत्र्य वीर सावरकर, जिसका सह-लेखन और निर्देशन रणदीप हुड्डा ने किया है और शीर्षक भूमिका भी निभाई है. विवेक अग्निहोत्री की 'फाइल्स' सीरीज की अगली किस्त भी आ रही है, जो इस बार 1984 के भीषण सिख विरोधी दंगों पर है. दक्षिणपंथी झुकाव वाले इस फिल्मकार की द कश्मीर फाइल्स ने पहले खासा विवाद खड़ा किया और नकदी बटोरी थी.
यह संयोग नहीं है कि ये सभी फिल्में 2023 की दूसरी छमाही या 2024 की शुरुआत में आ रही हैं, जब चुनाव की गहमागहमी अपने चरम पर होगी. द कश्मीर फाइल्स ने 25 करोड़ रुपए के अनुमानित बजट के मुकाबले 246 करोड़ रुपए बटोरे और निर्माताओं को यकीन दिला दिया कि राजनीति पर दांव लगाना फायदे का सौदा है.
Denne historien er fra April 26, 2023-utgaven av India Today Hindi.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent ? Logg på
Denne historien er fra April 26, 2023-utgaven av India Today Hindi.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent? Logg på
शोख सनसनी दिल्ली की
आर्ट क्यूरेटर, परोपकारी और सोशल मीडिया सनसनी शालिनी पासी नेटफ्लिक्स की सीरीज फैबुलस लाइव्ज वर्सज बॉलीवुड वाइव्ज में शिरकत करने के बाद मिली शोहरत का मजा ले रहीं
पाइ पटेल की भारत यात्रा
यान मार्टेल के चर्चित उपन्यास लाइफ ऑफ पाइ पर फिल्म भी बनी. और अब यह पुरस्कार विजेता नाटक
कला कनॉट प्लेस के इर्द-गिर्द की
धूमीमल गैलरी में चल रही प्रदर्शनी ज्वॉइनिंग द डॉट्स दिल्ली के सांस्कृतिक दिल कनॉट प्लेस के चिरस्थायी आकर्षण को एक तरह की आदरांजलि
हिंदुस्तानी सिनेमा की एक नई रौशनी
फिल्मकार पायल कपाडिया इन दिनों एक अलग ही रंगत में हैं. वजह है उनकी फिल्म ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट और उन्हें मिल रही विश्व प्रसिद्धि. उनका सफर एक बड़े सिनेमाई मुकाम पर जा पहुंचा है. अब यहां से इस जुनूनी आर्टिस्ट का करियर एक नई उड़ान लेने को तैयार
रतन टाटा जिन्हें आप नहीं जानते
पिछले महीने 86 वर्ष की उम्र में दिवंगत हुए रतन टाटा. भारत की सबसे पुरानी विशाल कंपनी के चेहरे रतन को हम में से ज्यादातर लोगों ने जब भी याद किया, वे एक सुविख्यात सार्वजनिक शख्सियत और दूसरी ओर एक रहस्यमय पहेली के रूप में नजर आए.
विदेशी निवेश का बढ़ता क्लेश
अर्थव्यवस्था मजबूत नजर आ रही है, मगर विदेशी निवेशक भारत पर अपना बड़ा और दीर्घकालिक दांव लगाने से परहेज कर रहे हैं
अब शासन का माझी मंत्र
मोहन चरण माझी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार राज्य में 'जनता प्रथम' के सिद्धांत वाली शासन प्रणाली स्थापित कर रही. उसने नवीन पटनायक के दौर वाले कथित नौकरशाही दबदबे को समाप्त किया. आसान पहुंच, ओडिया अस्मिता और केंद्रीय मदद के बूते बड़े पैमाने पर शुरू विकास के काम इसमें उसके औजार बन रहे
होशियार! गठरी में लगे महा डिजिटल ढंग
अमूमन दूसरे देशों के ठिकानों से साइबर अपराधी नेटवर्क अब टेक्नोलॉजी और फंसाने के मनोवैज्ञानिक तरीकों से जाल बिछाकर और फर्जी पुलिस और प्रवर्तन अफसरों का वेश धरकर सीधे सरल लोगों की जीवन भर की जमा-पूंजी उड़ा ले जा रहे
कुछ न कर पाने की कसक
कंग्रेस ने 16 दिसंबर, 2023 को जितेंद्र 'जीतू' पटवारी को मध्य प्रदेश का अपना नया अध्यक्ष बनाने का ऐलान किया था.
पुलिस तक पर्याप्त नहीं
गुजरात के तटीय इलाके में मादक पदार्थों की तस्करी और शहरी इलाकों में लगातार बढ़ती प्रवासी आबादी की वजह से राज्य पुलिस पर दबाव खासा बढ़ गया है. ऐसे में उसे अधिक क्षमता की दरकार है. मगर बल में खासकर सीनियर अफसरों की भारी कमी है. इसका असर उसके मनोबल पर पड़ रहा है.