पहली मई की शाम दिल्ली में थिएटर के प्रीमियर इंस्टीट्यूट राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) में एक बड़ी घटना आकार ले रही थी. उसके अभिमंच सभागार में तीसरे साल के 26 छात्र विदा ले रहे थे. इनमें से 18 छात्राएं थीं. यानी तीन-चौथाई. शास्त्रीय नृत्यों को अगर छोड़ दें तो देश के परफॉर्मिंग आर्ट्स वाले किसी भी संस्थान में यह एक दुर्लभ अनुपात था. खुद एनएसडी के साठेक साल के इतिहास में कुछ बैच में छात्र-छात्राओं का अनुपात 50:50 के इर्द-गिर्द तो पहुंचा लेकिन छात्राओं के ऐसे एकतरफा ढंग से यहां आने में कामयाब होने का यह पहला और अहम सामाजिक-सांस्कृतिक घटनाक्रम था.
और यह पहला ही वाकया उनके लिए अग्निपरीक्षा से कम साबित न हुआ. तीन साल का कोर्स कोरोना की वजह से पांच साल में पूरा हुआ. एनएसडी भी इस दौरान जैसे भूचाल से गुजर रहा था. तीन निदेशक बदले और अब भी वह अस्थाई निदेशक की देखरेख में है. अभिनय जैसी खालिस मंच पर सीखी जाने वाली कला भी उन्हें लॉकडाउन के चलते अरसे तक ऑनलाइन पढ़नी पड़ी. परिसर में लौटने पर अच्छे शिक्षक और ट्रेनिंग के बेहतर हालात के लिए आंदोलन और भूख हड़ताल तक चली. मशहूर और व्यस्त अभिनेता परेश रावल के चेयरमैन होने से भी विद्यालय को कोई खास लाभ न मिल सका.
खैर, बात छात्राओं की. जुलाई 2018 में उनके एनएसडी पहुंचने का सिलसिला भी कम दिलचस्प न था. तब वहीं वॉयस और स्पीच की टीचर रहीं हेमा सिंह याद करती हैं, "क्लास इंट्रोडक्शन में एक के बाद एक 18 छात्राएं चली आ रही थीं. हमें लगा कि अरे! ये कुछ ज्यादा ही दिख रही हैं. उत्साह उनमें गजब का. उन्हें देखकर एक बात समझ में आ गई कि इस बैच के साथ न सिर्फ क्लासेज बल्कि प्रोडक्शन भी चुनौतीपूर्ण होने वाले हैं.”
Denne historien er fra May 17, 2023-utgaven av India Today Hindi.
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