रणदीप सुरजेवाला की चुनाव जीतने की कला ने लगता है, चालों और रणनीतियों से भरी सुन त्जू की किताब का पन्ना चुरा लिया है. प्राचीन चीनी सैन्य जनरल मानते थे कि "सर्वोच्च उत्कृष्टता बिना लड़े दुश्मन का प्रतिरोध तोड़ने में है." दुबले-पतले 55 वर्षीय सुरजेवाला को सितंबर, 2020 में कांग्रेस ने कर्नाटक का प्रभारी महासचिव बनाया, तब वे जानते थे कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को हराना टेढ़ी खीर होगी. राज्य विधानसभा के चुनाव महज ढाई साल दूर थे. लिहाजा, उन्होंने वही रणनीति अपनाई जो 2005 में हरियाणा के नरवाना निर्वाचन क्षेत्र में अपनाई थी. उस वक्त युवा विधायक सुरजेवाला ने राज्य के चुनाव में दिग्गज मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला को नाकों चने चबवा दिए थे. वे कहते हैं, "विरोधी की साख इस हद तक खत्म कर दो कि जब अंततः वह चुनाव में उतरे, तो अपनी हार पहले ही स्वीकार कर चुका हो. इसके लिए आप उसे तब तक धीरे-धीरे कुतरते जाएं जब तक वह आखिरकार ढह न जाए."
सुरजेवाला ने राज्य के नेताओं-कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी (केपीसीसी) के अध्यक्ष दाढ़ी से सुशोभित और जोशो-खरोश से भरे 61 वर्षीय डी. के. शिवकुमार, और कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) के नेता और अब मुख्यमंत्री के रूप में दूसरी पारी शुरू करने जा रहे गंवई लेकिन धीर-गंभीर 75 वर्षीय सिद्धारमैया-के साथ मिलकर नई-नवेली रणनीति लागू की, जिसमें फ्रंटफुट पर खेलना और विरोधी को लगातर बचाव की मुद्रा में रखना शामिल था. इसी रणनीति ने ताकतवर भाजपा को उसके दक्षिणी गढ़ में सीटों के इतने बड़े अंतर से हरा दिया, जो कांग्रेस ने राज्य में 1989 के बाद कभी नहीं जीती थीं. वोटों की गिनती के बाद कांग्रेस ने राज्य की 224 में से 135 सीटें जीत लीं, जो साधारण बहुमत के लिए जरूरी 113 सीटों से 22 ज्यादा थीं.
Denne historien er fra May 31, 2023-utgaven av India Today Hindi.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent ? Logg på
Denne historien er fra May 31, 2023-utgaven av India Today Hindi.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent? Logg på
शब्द हैं तो सब है
शब्द और साहित्य की जादुई दुनिया का जश्न मनाते लेखक-राजनेता शशि थरूर अपने निबंधों की किताब के साथ हाजिर
अब बड़ी भूमिका के लिए बेताब
दूरदराज की मंचीय प्रतिभाओं को निखारने का बड़ा प्लेटफॉर्म बनकर उभरा एमपीएसडी. नई सोच वाले निदेशक के साथ अब वह एक नई राह पर. लेकिन क्या वह एनएसडी जैसा मुकाम बना पाएगा?
डिजिटल डकैतों पर सख्त कार्रवाई
नया-नवेला जिला डीग तेजी से देश में ऑनलाइन ठगी का केंद्र बनता जा रहा था. राज्य सरकार और पुलिस की निरंतर कार्रवाई की वजह से राजस्थान के इस नए जिले में पिछले छह महीने के दौरान साइबर अपराध की गतिविधियों में आई काफी कमी
सनसनीखेज सफलता
पल में मजाकिया, पल में खौफनाक. हिंदी सिनेमा में हॉरर कॉमेडी फिल्मों का आया नया जमाना. चौंकने-डरने को बेताब दर्शकों के कंधों पर सवार होकर भूतों ने धूमधाम से की बॉक्स ऑफिस पर वापसी
ममता के लिए मुश्किल घड़ी
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी सरकार खिन्न और प्रदर्शन करते राज्य के लोगों का भरोसा के लिए अंधाधुंध कदम उठा रही है
ठोकने की यह कैसी नीति
सुल्तानपुर में जेवर की दुकान में डकैती के आरोपी मंगेश यादव को मुठभेड़ में मार डालने के बाद विपक्षी दलों के निशाने पर योगी सरकार. फर्जी मुठभेड़ एक बार फिर बनी मुद्दा
अग्निपरीक्षा की तेज आंच
अदाणी जांच में हितों के टकराव के आरोपों में घिरीं और अपने ही स्टाफ में उभरते विद्रोह से सेबी की मुखिया से ढेरों जवाब और खुलासों की दरकार
अराजकता के गर्त में वापसी
केंद्र और राज्य के निकम्मेपन से मणिपुर में नए सिरे से उठीं लपटें, अबकी बार नफरत की दरारें और गहरी तथा चौड़ी लगने लगीं, अमन बहाली की संभावनाएं असंभव-सी दिखने लगीं
अब आई मगरमच्छों की बारी
राजस्थान में 29 जुलाई, 2024 की दोपहर विधानसभा में राजस्थान लोकसेवा आयोग (आरपीएससी) परीक्षा में पेपर लीक को लेकर सियासत गरमाई हुई थी. प्रतिपक्ष के नेता टीकाराम जूली ने पेपर लीक के मामलों को लेकर भजनलाल शर्मा सरकार पर यह आरोप जड़ दिया कि अभी तक सरकार ने छोटी-छोटी मछलियां पकड़ी हैं, मगरमच्छ तो अभी भी खुले घूम रहे हैं. इस हमले का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री शर्मा ने कहा, \"आप बेफिक्र रहिए जल्द ही हम उन मगरमच्छों को भी पकड़ेंगे जो बाहर घूम रहे हैं.\"
नहरें: थीं तो बेशक ये पानी के ही लिए
सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"