अनुप्रास या एक ही अक्षर से शुरू होने वाले शब्दों के प्रति नरेंद्र मोदी का लगाव जाना-माना है. उनके प्रिय अनुप्रासों में अंग्रेजी के 2एस: स्पीड और स्केल हैं. उन्हें यह कहना बहुत पसंद है कि अगर पिछली सरकारों को लगता था कि स्पीड यानी रफ्तार विलासिता है और स्केल यानी पैमाना जोखिम, तो प्रधानमंत्री के तौर पर उन्होंने "रफ्तार को देश की महत्वाकांक्षा और पैमाने को ताकत बना दिया है." मोदी ने दिखा दिया कि इस पद पर अपने नौ साल में और दूसरे कार्यकाल के चार साल में उन्होंने जो कुछ हासिल किया, उसमें तकरीबन हर चीज में ये गुण कूट-कूटकर भरे थे.
एकदम ताजा उदाहरण इसी 28 मई को उद्घाटित शानदार, अत्याधुनिक, षटकोणीय नया संसद भवन है. यह परिसर गजब की रफ्तार से बनकर तैयार हुआ. बिल्कुल शुरुआत में ही कोविड की पाबंदियां लागू हो जाने के बावजूद इसे पूरा होने में महज ढाई साल लगे. फिर पैमाना देखिए. इमारत में दोनों सदनों के लिए 1,272 सदस्यों के बैठने की क्षमता है. यह 790 सीटों के मूल ढांचे के मुकाबले 60 फीसद से ज्यादा है. सीटें इतनी पर्याप्त हैं कि अगली शताब्दी तक सांसदों की संख्या कितनी भी बढ़ जाए, इसमें समा सकती है. भव्यता के लिहाज से नई संसद में परंपरा और आधुनिकता का मेल है - बलुआ पत्थरों से बना रौबदार अगला हिस्सा, ऊंची छत पर मोर के रूपांकन, फर्श पर हथकरघे के कालीन और बारीक नक्काशीदार लकड़ी की सजावट, जो हर सीट पर मौजूद कंप्यूटर टैबलेट की शोभा और बढ़ा देती है. उद्घाटन समारोह के दौरान अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने कहा, "यह नया भारत है जो नए लक्ष्य तय कर रहा है, नई राहें गढ़ रहा है. नया उत्साह है, नई सोच है, नई दृष्टि है और नया संकल्प है."
Denne historien er fra June 14, 2023-utgaven av India Today Hindi.
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परदेस में परचम
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निडर नवाचारी
खासी उथल-पुथल मचा देने वाली गतिविधियों से भरपूर भारतीय उद्यमिता के क्षेत्र में कुछ नया करने वालों की नई पौध कारोबार, टेक्नोलॉजी और सामाजिक असर पैदा करने के नियम नए सिरे से लिख रही है.
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महानता के दो रूप हैं. एक वे जो अपने पेशे के दिग्गजों के मुकाबले कहीं ज्यादा चमक और ताकत हासिल कर लेते हैं.
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ढर्रा-तोड़ो या फिर अपना ढर्रा तोड़े जाने के लिए तैयार रहो. यह आज के कारोबार में चौतरफा स्वीकृत सिद्धांत है. प्रतिस्पर्धा से प्रेरित होकर भारत के सबसे ताकतवर कारोबारी अगुआ अपने साम्राज्यों को मजबूत कर रहे हैं. इसके लिए वे नए मोर्चे तलाश रहे हैं, गति और पैमाने के लिए आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस सरीखे उथल-पुथल मचा देने वाले टूल्स का प्रयोग कर रहे हैं और प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए नवाचार बढ़ा रहे हैं.
देश के फौलादी कवच
लबे वक्त से माना जाता रहा है कि प्रतिष्ठित शख्सियतें बड़े बदलाव की बातें करते हुए सियासी मैदान में लंबे-लंबे डग भरती हैं, वहीं किसी का काम अगर टिकता है तो वह अफसरशाही है.