सरकार संसद के मॉनसून सत्र में चर्चा और पारित कराने के लिए इससे जुड़ा विधेयक तैयार कर रही है. 2019 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस के 106वें सत्र में मोदी ने ऐलान किया था कि 'विश्व गुरु' के रूप में भारत का अतीत का गौरव बहाल करने की दूरदृष्टि से ऐसी दूरगामी पहल जरूरी है. इसका लक्ष्य भारत को अनुसंधान और नवाचार के क्षेत्र में वैश्विक अगुआ बनाना है. इसमें देरी की वजह कोविड- 19 महामारी को बताया जा रहा है.
इसी साल संसद से पारित होने के बाद, एनआरएफ की स्थापना राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) की सिफारिश के अनुरूप वैज्ञानिक अनुसंधान को 'उच्चस्तरीय रणनीतिक दिशा' देने के लिए 2023 और 2028 के बीच 50,000 करोड़ रुपए के निवेश से की जाएगी.
एनआरएफ पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीएफ) के तहत अनूठा संस्थान होगा, जिसके लिए पहले पांच साल रिसर्च फंडिंग के 36,000 करोड़ रुपए निजी साझेदारों यानी ज्यादातर उद्योग से आएंगे. यह अनुसंधान और विकास (आरऐंडडी) के बीज बोएगा, उन्हें उगाएगा और बढ़ावा देगा. यह भारत के विश्वविद्यालयों, कॉलेजों, शोध संस्थानों आदि में अनुसंधान और नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा देगा. केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह बताते हैं, “एनआरएफ यह सुनिश्चित करने के लिए है कि वैज्ञानिक अनुसंधान में समान ढंग से धन लगे और ज्यादा निजी भागीदारी आगे आए. हमने यह भी पाया कि वैज्ञानिक अनुसंधान अभी तक सरकारी महकमों और प्रयोगशालाओं, केंद्रीय और राज्य विश्वविद्यालयों के अलग-थलग और बंद कमरों में होते हैं, जिनके बुनियादी ढांचे में भी वैसी एकरूपता नहीं है जैसी भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों में है. वैज्ञानिक अनुसंधान की फंडिंग में भी एकरूपता का अभाव है. विधेयक में इन सब मसलों को हल किया गया है."
Denne historien er fra August 02, 2023-utgaven av India Today Hindi.
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