इस साल फरवरी में हर्षद पूनिया की तो जैसे दुनिया ही लुट गई. हरियाणा के रोहतक का यह 28 वर्षीय नौजवान (जिसका नाम हमने उन्हीं के कहने पर बदल दिया है) डिजिटल मार्केटिंग में एमबीए की डिग्री के साथ बेंगलूरू के एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म में दो साल पूरे करने वाला था. तभी एकाएक उसे और दूसरे 600 लोगों को निकाल दिया गया. पूनिया कहते हैं, "संस्थापक-सीईओ की ओर से एक ई-मेल आया कि कंपनी 20 फीसद कर्मचारियों की छंटनी कर रही है क्योंकि नया फंड जुटाना मुश्किल हो रहा है. हमारी आइडी लॉक कर दी गई और हमें एक महीने का नोटिस और एक महीने का वेतन दिया गया." दिसंबर, 2022 में ही पूनिया की शादी हुई थी. उनकी पत्नी की भी उसी दिन छुट्टी कर दी गई थी, जो उसी कंपनी की एक छोटी वीडियो ऐप इकाई में काम कर रही थीं. पूनिया कहते हैं, "उस लम्हे की याद आते ही कंपकंपी छूटती है. मुझे हमेशा हैरत होती थी कि जिसमें मैं काम कर रहा था, उन जैसे स्टार्ट-अप दुनिया भर के भत्तों पर मनमाना पैसा क्यों खर्च करते हैं. मसलन, जोमैटो कूपन, अवकाश भत्ते, नए लोगों को भी ऊंची-ऊंची तनख्वाहें वगैरह. इसके मुकाबले एक टिकाऊ नौकरी कहीं बेहतर होती है." पूनिया खुद को भाग्यशाली मानते हैं कि उन्हें महीने भर बाद ही दूसरी नौकरी मिल गई (उनके कुछ दोस्त अब भी बेरोजगार हैं). हालांकि उनकी पत्नी एक बार कॉर्पोरेट नौकरी में हाथ जलने के बाद घर से फ्रीलांसिंग में हाथ आजमा रही हैं.
अभी साल भर पहले तक पूनिया जैसे स्टार्ट-अप प्रोफेशनल भारतीय कंपनियों में हाथोहाथ लिए जाते थे. उनकी काफी मांग थी और जिनके पास बड़ी जिम्मेदारियां (यहां तक कि छोटी कंपनियों में भी) संभालने का अनुभव था, उन्हें काफी ऊंचे वेतन का लालच दिया जाता था. सूत्रों के मुताबिक, एडुटेक क्षेत्र में पढ़ाने वालों को कभी-कभी उनके पुराने वेतन से दोगुने पर रखा जाता था और कई तरह के अन्य भत्ते दिए जाते थे, जिससे कर्मचारियों के बीच भारी गैर-बराबरी पैदा होती थी. लेकिन यह सब अब एक सपना लगता है क्योंकि भारतीय स्टार्ट-अप का माहौल बड़ी चुनौतियों से दो-चार है. भारतीय स्टार्ट-अप कथित तौर पर नवंबर, 2022 तक (सरकारी अनुमान के अनुसार) 8 4,012 'मान्यता प्राप्त' फर्मों के साथ अमेरिका और चीन के बाद दुनिया में तीसरे सबसे बड़े थे और 8,60,000 लाख लोगों को नौकरी दे रहे थे.
Denne historien er fra August 02, 2023-utgaven av India Today Hindi.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent ? Logg på
Denne historien er fra August 02, 2023-utgaven av India Today Hindi.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent? Logg på
परदेस में परचम
भारतीय अकादमिकों और अन्य पेशेवरों का पश्चिम की ओर सतत पलायन अब अपने आठवें दशक में है. पहले की वे पीढ़ियां अमेरिकी सपना साकार होने भर से ही संतुष्ट हो ती थीं या समृद्ध यूरोप में थोड़े पांव जमाने का दावा करती थीं.
भारत का विशाल कला मंच
सांफ्ट पावर से लेकर हार्ड कैश, हाई डिजाइन से लेकर हाई फाइनेंस आदि के संदर्भ में बात करें तो दुनिया के अन्य हिस्सों की तरह भारत की शीर्ष स्तर की कला हस्तियां भी भौतिक सफलता और अपनी कल्पनाओं को परवान चढ़ाने के बीच एक द्वंद्व को जीती रहती हैं.
सपनों के सौदागर
हम ऐसी दुनिया में रहते हैं जहां मनोरंजन से हौवा खड़ा हो है और उसी से राहत भी मिलती है.
पासा पलटने वाले महारथी
दरअसल, जिंदगी की तरह खेल में भी उतारचढ़ाव का दौर चलता रहता है.
गुरु और गाइड
अल्फाज, बुद्धिचातुर्य और हास्यबोध उनके धंधे के औजार हैं और सोशल मीडिया उनका विश्वव्यापी मंच.
निडर नवाचारी
खासी उथल-पुथल मचा देने वाली गतिविधियों से भरपूर भारतीय उद्यमिता के क्षेत्र में कुछ नया करने वालों की नई पौध कारोबार, टेक्नोलॉजी और सामाजिक असर पैदा करने के नियम नए सिरे से लिख रही है.
अलहदा और असाधारण शख्सियतें
किसी सर्जन के चीरा लगाने वाली ब्लेड की सटीकता उसके पेशेवर कौशल की पहचान होती है.
अपने-अपने आसमान के ध्रुवतारे
महानता के दो रूप हैं. एक वे जो अपने पेशे के दिग्गजों के मुकाबले कहीं ज्यादा चमक और ताकत हासिल कर लेते हैं.
बोर्डरूम के बादशाह
ढर्रा-तोड़ो या फिर अपना ढर्रा तोड़े जाने के लिए तैयार रहो. यह आज के कारोबार में चौतरफा स्वीकृत सिद्धांत है. प्रतिस्पर्धा से प्रेरित होकर भारत के सबसे ताकतवर कारोबारी अगुआ अपने साम्राज्यों को मजबूत कर रहे हैं. इसके लिए वे नए मोर्चे तलाश रहे हैं, गति और पैमाने के लिए आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस सरीखे उथल-पुथल मचा देने वाले टूल्स का प्रयोग कर रहे हैं और प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए नवाचार बढ़ा रहे हैं.
देश के फौलादी कवच
लबे वक्त से माना जाता रहा है कि प्रतिष्ठित शख्सियतें बड़े बदलाव की बातें करते हुए सियासी मैदान में लंबे-लंबे डग भरती हैं, वहीं किसी का काम अगर टिकता है तो वह अफसरशाही है.