उत्तर प्रदेश में दलित वोटों की सबसे बड़ी झंडाबरदार बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती फिलवक्त अपने राजनैतिक जीवन के सबसे कठिन दौर में हैं. पिछले साल के यूपी विधानसभा चुनाव में पार्टी एक सीट पर सिमट चुकी है. बसपा का हाथी सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खिलाफ बेंगलूरू में 18 जुलाई को विभिन्न विपक्षी दलों के गठबंधन 'इंडिया' यानी 'इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव एलायंस' को आकार लेता हुआ बाहर से ही देख रहा था. अगले दिन 19 जुलाई को मायावती ने नई दिल्ली में प्रेसवार्ता करके कांग्रेस, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) और इनके साथ गठबंधन करने वाले दलों को जातिवादी-पूंजीवादी ठहराते अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा की.
इस ऐलान को छह दिन ही बीते थे कि 25 जुलाई को नई दिल्ली के गुरुद्वारा रकाबगंज स्थित बसपा के केंद्रीय कार्यालय में पार्टी नेताओं के साथ बैठक में मायावती ने चौंका दिया. मायावती बोलीं, "बैलेंस ऑफ पावर और हाशिए पर पड़े लोगों के उत्थान को सुनिश्चित करने के लिए बसपा राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और तेलंगाना में आगामी विधानसभा चुनाव के बाद सरकार में शामिल होने का फैसला ले सकती है." मिजोरम और इन राज्यों में इसी साल अक्तूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव हो सकते हैं. मायावती ने यह भी कहा कि कमजोर वर्गों और मुसलमानों की भलाई के लिए यह महत्वपूर्ण है कि चार राज्यों में मजबूत और अहंकारी सरकार की बजाए एक गठबंधन सरकार सत्ता में हो जो लोगों के कल्याण के काम करने को बाध्य हो. वैसे, इस बदलाव को राजनैतिक विश्लेषक मायावती की असमंजस भरी रणनीति करार दे रहे हैं.
लखनऊ के जय नारायण डिग्री कॉलेज के राजनीतिशास्त्र विभाग में प्रोफेसर ब्रजेश मिश्र बताते हैं, "पिछले कई चुनावों से बसपा के समर्थक वोट बैंक में लगातार गिरावट आ रही है. पार्टी में अपने राजनैतिक भविष्य को असुरक्षित मानकर कई वरिष्ठ नेताओं ने दूसरे दलों को अपना ठिकाना बना लिया है. बसपा के हतोत्साहित कार्यकर्ताओं और नेताओं में आगामी चुनाव के लिए जोश भरने की रणनीति के से ही मायावती ने चुनाव बाद गठबंधन की बात कही है."
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