भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) सुप्रीमो और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के लिए मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही हैं. केसीआर नाम से चर्चित बीआरएस प्रमुख अब खुद को सियासी तौर पर घिरा पा रहे हैं. पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र के कुछ किसान नेताओं को छोड़ के दें तो उनकी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं को सिरे चढ़ाने वाला कोई खेवनहार दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रहा. अगर उनके अपने राज्य की बात की जाए तो साल के अंत में प्रस्तावित तेलंगाना विधानसभा चुनाव में लगातार तीसरी बार जीत के इरादे के साथ मैदान में उतरने वाले केसीआर को सत्ता-विरोधी लहर से जूझना होगा.
केसीआर ने पिछले करीब दो साल में अपनी पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस के विकल्प के तौर पर खड़ा करने की हरसंभव कोशिश की. यहां तक कि पिछले साल पार्टी का नाम ही तेलंगाना राष्ट्र समिति से बदलकर भारत राष्ट्र समिति कर दिया. वे चाहते थे कि एक महागठबंधन बनाकर 2024 में उसका नेतृत्व कर सकें लेकिन उनकी कवायद किसी को ज्यादा रास नहीं आई और आखिरकर बीआरएस प्रमुख अलग-थलग पड़ गए. दूसरी तरफ, कांग्रेस और भाजपा ने उनके कैबिनेट सहयोगियों और तेलंगाना में पार्टी के कुछ अन्य नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर उनकी मुश्किलें बढ़ा दी हैं.
कुछ बीआरएस विधायकों पर महत्वाकांक्षी दलित बंधु और 2बीएचके आवास योजनाओं सहित कई कल्याणकारी कार्यक्रमों के लाभार्थियों से 'कट मनी' लेने के आरोप लग रहे हैं. आरोप इस कदर गंभीर हैं कि केसीआर को 27 अप्रैल में पार्टी के पूर्ण अधिवेशन के दौरान उन्हें बर्खास्तगी का सामना करने को तैयार रहने के लिए आगाह करने पर बाध्य होना पड़ा. विपक्ष इस मुद्दे को हवा न दे पाए इसलिए केसीआर सरकार ने यह भी पक्का किया कि नवनियुक्त राज्य भाजपा प्रमुख जी. किशन रेड्डी 20 जुलाई को राजधानी हैदराबाद के बाहरी इलाके में अधूरे पड़े 2 बीएचके अपार्टमेंट की साइट तक न पहुंच पाएं. दिल्ली से आए रेड्डी को प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने से रोकने के लिए पुलिस ने एयरपोर्ट के पास ही एक मुख्य सड़क पर रोक दिया. रेड्डी विरोध में वहीं धरने पर बैठ गए.
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