प्रस्तावित कानून का मकसद 'पहाड़ी नृवंशीय समूह' को तीन अन्य समुदायों-'गद्दा ब्राह्मण', 'कोली' और 'पद्दारी' के साथ केंद्रशासित क्षेत्र की अनुसूचित जनजातियों की सूची में जोड़ना है. लेकिन, गुज्जर और बकरवाल आदिवासी समुदाय सरकार के इस कदम का तीव्र विरोध कर रहे हैं. जम्मू और कश्मीर में विरोध-प्रदर्शन करते हुए ये समुदाय विधेयक को वापस लेने की मांग कर रहे हैं. अधिकांशतः पीर पंजाल घाटी में पहाड़ियों के पास रहने वाले इन समुदायों का तर्क है कि विधेयक के कार्यान्वयन से सामाजिक और आर्थिक रूप से बेहतर स्थिति वाले समुदायों को आरक्षण का लाभ मिलेगा.
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने अक्तूबर, 2022 में जनजातीय मामलों के मंत्रालय की ओर से प्रस्तावित इस आरक्षण को मंजूरी दे दी थी. इसे न्यायमूर्ति जी. डी. शर्मा आयोग की सिफारिशों के आधार पर पेश किया गया था. मार्च, 2020 में केंद्रशासित क्षेत्र प्रशासन के गठित तीन सदस्यीय आयोग को जम्मू और कश्मीर में सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक रूप से वंचित समूहों की समस्याएं सूचीबद्ध करने का काम सौंपा गया था.
यह विधायी प्रयास अनुच्छेद 370 के निष्प्रभावी होने के बाद हाशिए पर रह गए जनसमुदायों को सशक्त बनाने की केंद्र की व्यापक रणनीति के अनुरूप है.
Denne historien er fra August 23, 2023-utgaven av India Today Hindi.
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