वाकया तो यह दिसंबर 2014 का है पर गौर करने लायक है. चर्चित रामकथा गायक मोरारी बापू एक कथा के लिए कोलकाता के न्यू अलीपुर में एक उद्योगपति के यहां हट में रुके थे. एक दोपहर उनसे मिलने मुंबई से एक अधेड़ उम्र का अनुयायी आया. शुरुआती औपचारिकताओं के बाद उसने एक पुस्तिका निकालकर बापू को दिखानी शुरू की जिसका शीर्षक कुछ इस तरह का था: मोरारी बापू के प्रातः स्मरणीय श्लोक. इस पर उनके खुश हो उठने की अपेक्षा के साथ उसने बताना शुरू कर दिया कि इसे छपवाकर बहुत-से लोगों में वह बांट भी चुका है. हमेशा शांत दिखने वाले बापू का बदलता चेहरा देखने लायक था. "यह क्या किया है आपने? इसी तरह से समझा है मुझे? मेरी बातें तो इसके खिलाफ पड़ती हैं. घिसे-पिटे ढर्रे पर ही चलते रहने को मैं कैसे कह सकता हूं?" सारा माहौल असहज. आसपास मौजूद लोग और आगंतुक भी सन्न वहां से उठने के बाद एक युवा उत्साही अनुयायी ने दूसरे से कहा, "इस बंदे पर मुकदमा कर दें? बापू से पूछे बिना उनके नाम से किताब छपवाकर उनकी इमेज खराब करने पर..." सहचर ने धीरे से समझायाः उस बंदे ने जो किया सो किया, तुम भी अब तक न समझ पाए? बापू हमेशा कहते आए हैं, संवाद करो, विवाद नहीं."
एक और वाकया उसी साल मई का. बापू गोंडा (यूपी) में दूरदराज के राजापुर गांव में कथा कह रहे थे. वहीं पर मुशायरे के लिए बुलाए गए शायरों में मुंबई के बुजुर्ग और अशक्त-से असीर बुरहानपुरी भी शामिल थे. लखनऊ से ही उन्होंने पान खा और बंधवा लिए थे. कच्चे रास्तों से गुजरती कार में उछाल खाने के बाद पान थूकते हुए वे बोले: “इस उम्र में ऐसे सितम का क्या कहिए! पर क्या करें, इस फकीर की पर्सनालिटी ऐसी है कि खींचे लिए आती है." उन्होंने एक और ऑब्जर्वेशन दी कि मुशायरे में लोग बापू की चापलूसी में भी कलाम पढ़ेंगे लेकिन वे ताड़ लेते हैं कि कौन क्या और क्यों कर रहा है.
Denne historien er fra August 23, 2023-utgaven av India Today Hindi.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent ? Logg på
Denne historien er fra August 23, 2023-utgaven av India Today Hindi.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent? Logg på
शब्द हैं तो सब है
शब्द और साहित्य की जादुई दुनिया का जश्न मनाते लेखक-राजनेता शशि थरूर अपने निबंधों की किताब के साथ हाजिर
अब बड़ी भूमिका के लिए बेताब
दूरदराज की मंचीय प्रतिभाओं को निखारने का बड़ा प्लेटफॉर्म बनकर उभरा एमपीएसडी. नई सोच वाले निदेशक के साथ अब वह एक नई राह पर. लेकिन क्या वह एनएसडी जैसा मुकाम बना पाएगा?
डिजिटल डकैतों पर सख्त कार्रवाई
नया-नवेला जिला डीग तेजी से देश में ऑनलाइन ठगी का केंद्र बनता जा रहा था. राज्य सरकार और पुलिस की निरंतर कार्रवाई की वजह से राजस्थान के इस नए जिले में पिछले छह महीने के दौरान साइबर अपराध की गतिविधियों में आई काफी कमी
सनसनीखेज सफलता
पल में मजाकिया, पल में खौफनाक. हिंदी सिनेमा में हॉरर कॉमेडी फिल्मों का आया नया जमाना. चौंकने-डरने को बेताब दर्शकों के कंधों पर सवार होकर भूतों ने धूमधाम से की बॉक्स ऑफिस पर वापसी
ममता के लिए मुश्किल घड़ी
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी सरकार खिन्न और प्रदर्शन करते राज्य के लोगों का भरोसा के लिए अंधाधुंध कदम उठा रही है
ठोकने की यह कैसी नीति
सुल्तानपुर में जेवर की दुकान में डकैती के आरोपी मंगेश यादव को मुठभेड़ में मार डालने के बाद विपक्षी दलों के निशाने पर योगी सरकार. फर्जी मुठभेड़ एक बार फिर बनी मुद्दा
अग्निपरीक्षा की तेज आंच
अदाणी जांच में हितों के टकराव के आरोपों में घिरीं और अपने ही स्टाफ में उभरते विद्रोह से सेबी की मुखिया से ढेरों जवाब और खुलासों की दरकार
अराजकता के गर्त में वापसी
केंद्र और राज्य के निकम्मेपन से मणिपुर में नए सिरे से उठीं लपटें, अबकी बार नफरत की दरारें और गहरी तथा चौड़ी लगने लगीं, अमन बहाली की संभावनाएं असंभव-सी दिखने लगीं
अब आई मगरमच्छों की बारी
राजस्थान में 29 जुलाई, 2024 की दोपहर विधानसभा में राजस्थान लोकसेवा आयोग (आरपीएससी) परीक्षा में पेपर लीक को लेकर सियासत गरमाई हुई थी. प्रतिपक्ष के नेता टीकाराम जूली ने पेपर लीक के मामलों को लेकर भजनलाल शर्मा सरकार पर यह आरोप जड़ दिया कि अभी तक सरकार ने छोटी-छोटी मछलियां पकड़ी हैं, मगरमच्छ तो अभी भी खुले घूम रहे हैं. इस हमले का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री शर्मा ने कहा, \"आप बेफिक्र रहिए जल्द ही हम उन मगरमच्छों को भी पकड़ेंगे जो बाहर घूम रहे हैं.\"
नहरें: थीं तो बेशक ये पानी के ही लिए
सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"