लखनऊ में 24 अगस्त को सड़कों पर लगे कांग्रेसी नेताओं के पोस्टर और बैनर मॉल एवेन्यू स्थित पार्टी के प्रदेश कार्यालय का पता बता रहे थे. नेताओं, कार्यकर्ताओं के हुजूम से कांग्रेस का प्रदेश कार्यालय पटा पड़ा था. मौका यूपी कांग्रेस कमेटी के नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष अजय राय के कार्यभार ग्रहण समारोह का था. मंच पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को जगह देकर अजय राय ने यह संदेश देने की कोशिश की कि वे पार्टी के नए और पुराने सभी कार्यकर्ताओं को साथ लेकर आगे बढ़ेंगे.
2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस यूपी में महज दो सीट जीतकर न्यूनतम स्तर पर आ गई थी. चुनाव नतीजों के करीब छह महीने बाद अक्तूबर 2022 में पार्टी ने नया प्रयोग करते हुए द समाज से ताल्लुक रखने वाले पूर्व सांसद और बसपा छोड़ कांग्रेस में आए बृजलाल खाबरी को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया था. संगठन के लिहाज से यूपी को छह भागों में बांटकर नकुल दुबे, वीरेंद्र चौधरी, अनिल यादव, योगेश दीक्षित, नसीमुद्दीन सिद्दीकी और अजय राय को अलग-अलग भागों के प्रांतीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी थी. ये सभी प्रांतीय अध्यक्ष अलग-अलग इलाकों और जातियों के थे.
यूपी कांग्रेस के इस प्रयोग की परीक्षा मई में हुए नगर निकाय चुनावों ने ली. इन चुनावों में कांग्रेस ने अब तक का सबसे निराशाजनक प्रदर्शन किया. पार्टी एक भी महापौर की सीट नहीं जीत पाई. नगरपालिका परिषद अध्यक्ष की भी महज चार और नगर पंचायत अध्यक्ष की 13 सीटों पर ही कब्जा जमा पाई. नगर निगम के पार्षद चुनाव में भी पार्टी का ग्राफ गिरा. 2017 में 110 पार्षद जीते थे तो इस बार यह संख्या घटकर 77 पर पहुंच गई. नगरीय निकाय चुनाव में बेहद खराब प्रदर्शन के बाद से ही तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष खाबरी के हटाए जाने की अटकलें लगाई जाने लगी थीं. इन अटकलों का अंदाजा खाबरी को भी था, इसलिए उन्होंने भी पार्टी के भीतर अपनी सक्रियता बढ़ा दी थी.
Denne historien er fra September 06, 2023-utgaven av India Today Hindi.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent ? Logg på
Denne historien er fra September 06, 2023-utgaven av India Today Hindi.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent? Logg på
शब्द हैं तो सब है
शब्द और साहित्य की जादुई दुनिया का जश्न मनाते लेखक-राजनेता शशि थरूर अपने निबंधों की किताब के साथ हाजिर
अब बड़ी भूमिका के लिए बेताब
दूरदराज की मंचीय प्रतिभाओं को निखारने का बड़ा प्लेटफॉर्म बनकर उभरा एमपीएसडी. नई सोच वाले निदेशक के साथ अब वह एक नई राह पर. लेकिन क्या वह एनएसडी जैसा मुकाम बना पाएगा?
डिजिटल डकैतों पर सख्त कार्रवाई
नया-नवेला जिला डीग तेजी से देश में ऑनलाइन ठगी का केंद्र बनता जा रहा था. राज्य सरकार और पुलिस की निरंतर कार्रवाई की वजह से राजस्थान के इस नए जिले में पिछले छह महीने के दौरान साइबर अपराध की गतिविधियों में आई काफी कमी
सनसनीखेज सफलता
पल में मजाकिया, पल में खौफनाक. हिंदी सिनेमा में हॉरर कॉमेडी फिल्मों का आया नया जमाना. चौंकने-डरने को बेताब दर्शकों के कंधों पर सवार होकर भूतों ने धूमधाम से की बॉक्स ऑफिस पर वापसी
ममता के लिए मुश्किल घड़ी
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी सरकार खिन्न और प्रदर्शन करते राज्य के लोगों का भरोसा के लिए अंधाधुंध कदम उठा रही है
ठोकने की यह कैसी नीति
सुल्तानपुर में जेवर की दुकान में डकैती के आरोपी मंगेश यादव को मुठभेड़ में मार डालने के बाद विपक्षी दलों के निशाने पर योगी सरकार. फर्जी मुठभेड़ एक बार फिर बनी मुद्दा
अग्निपरीक्षा की तेज आंच
अदाणी जांच में हितों के टकराव के आरोपों में घिरीं और अपने ही स्टाफ में उभरते विद्रोह से सेबी की मुखिया से ढेरों जवाब और खुलासों की दरकार
अराजकता के गर्त में वापसी
केंद्र और राज्य के निकम्मेपन से मणिपुर में नए सिरे से उठीं लपटें, अबकी बार नफरत की दरारें और गहरी तथा चौड़ी लगने लगीं, अमन बहाली की संभावनाएं असंभव-सी दिखने लगीं
अब आई मगरमच्छों की बारी
राजस्थान में 29 जुलाई, 2024 की दोपहर विधानसभा में राजस्थान लोकसेवा आयोग (आरपीएससी) परीक्षा में पेपर लीक को लेकर सियासत गरमाई हुई थी. प्रतिपक्ष के नेता टीकाराम जूली ने पेपर लीक के मामलों को लेकर भजनलाल शर्मा सरकार पर यह आरोप जड़ दिया कि अभी तक सरकार ने छोटी-छोटी मछलियां पकड़ी हैं, मगरमच्छ तो अभी भी खुले घूम रहे हैं. इस हमले का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री शर्मा ने कहा, \"आप बेफिक्र रहिए जल्द ही हम उन मगरमच्छों को भी पकड़ेंगे जो बाहर घूम रहे हैं.\"
नहरें: थीं तो बेशक ये पानी के ही लिए
सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"