प्रयागराज से रायबरेली हाइवे पर ऊंचाहार करीब 20 किलोमीटर चलने पर दाहिनी ओर नहर पर अधूरे पड़े दो पुल सरकारी उपेक्षा की पहली झलक पेश करते हैं. हाइवे के किनारे मौजूद कुचरिया गांव से होते हुए इस पुल की तरफ जाने वाली मिट्टी की कच्ची सड़क बताती है कि इसी रास्ते पर हवा में लटके पुलों को प्रयागराज-रायबरेली हाइवे से जोड़ा जाना था. कच्ची सड़क के किनारे ढाबा चलाने वाले रामदीन पिछले सात साल से इस सड़क के पूरा होने की आस लगाए बैठे हैं. वे बताते हैं, "जब यह पुल बनना शुरू हुआ तो मैंने कुचरिया गांव में अपना खेत बेचकर सड़क के किनारे थोड़ी सी जमीन खरीदी थी. इस आस में कि जब यहां लोगों का आवागमन बढ़ेगा तो मेरे ढाबे की आमदनी भी बढ़ेगी. लेकिन अब न तो सड़क बनी और ढाबा भी नहीं चल पाया. खेत मैं पहले ही बेच चुका हूं."
रामदीन की तरह ही इस अधूरी पड़ी रिंग रोड के किनारे बसे करीब 20 गांवों में रहने वाले विकास की राह तक रहे हैं. करीब 17 किलोमीटर लंबी अधूरी रिंग रोड पर अलगअलग जगहों पर हवा में लटके आठ पुल साफ इशारा करते हैं कि सत्ता बदलने के साथ किस तरह प्राथमिकताएं बदलीं और रायबरेली की विकास योजनाएं ठिठक गई हैं.
वर्ष 2012 में सत्तारूढ़ संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की तत्कालीन चेयरपर्सन और रायबरेली से सांसद सोनिया गांधी ने शहर को जाम से निजात दिलाने के लिए 240 करोड़ रुपए की लागत से बनने वाली रिंग रोड की आधारशिला रखी थी. रायबरेली-महाराजगंज रोड पर आरटीओ दफ्तर के निकट शारदा सहायक नहर से लेकर प्रयागराज-रायबरेली राष्ट्रीय राजमार्ग पर कुचरिया के निकट 17 किलामीटर लंबी रिंग रोड बननी थी. इस रिंग रोड के जरिए रायबरेली से लखनऊ रोड, सुल्तानपुर रोड, जौनपुर रोड को भी जोड़ा जाना था. रिंग रोड का निर्माण 2014 में शुरू हुआ. निर्माण के लिए कई कंपनियों को जिम्मेदारी दी गई लेकिन सभी आधा अधूरा काम छोड़कर भाग गईं. 2021 में यह काम नेशनल हाइवे डिविजन लखनऊ की ओर से एक नई एजेंसी को सौंपा गया. एजेंसी को यह काम एक साल के अंदर पूरा करना था लेकिन अभी भी काम अधूरा पड़ा है. रिंग रोड पर छोटे-बड़े मिलाकर कुल 12 पुल बनने थे. इनमें से आठ पुल तो बन गए लेकिन इन्हें सड़क से जोड़ने में दिक्कतें आ रही हैं.
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