बेंगलूरू के राजीव श्रीनिवास को 2013 में पता चला कि उन्हें डायबिटीज है. पहली बात उनके मन में यह आई, "यह उतना बुरा नहीं है. मैं मिठाई के बगैर रह सकता हूं." अब 52 बरस के सॉफ्टवेयर इंजीनियर का कहना है कि इन दस साल में उनकी जिंदगी पर डायबिटीज का असर मिठाइयों से आगे चला गया है. वे कहते हैं, “मुझे देखने में मुश्किल होती है जिससे मैं दिन ढलने के बाद ड्राइव नहीं कर सकता. गुर्दे और दिल की परेशानियों के शुरुआती संकेत भी हैं." श्रीनिवास को टाइप 2 डायबिटीज है और दवाइयां चल रही हैं, फिर भी कई बार उन्होंने 'अतिरिक्त शक्कर नहीं' खाने के आदेश का उल्लंघन किया है. वे कहते हैं, “चाय में कभी-कभार एक चम्मच शक्कर भी मेरे लिए बहुत ज्यादा है. " चीनी की अचानक बढ़ोतरी को पचा न पाने की यही कमजोरी उनके शरीर में जहर घोल रही है. भारत में श्रीनिवास सरीखे लाखों लोग हैं और उनकी तादाद अभूतपूर्व तेजी से बढ़ रही है.
डायबिटीज के सबसे ज्यादा मरीज भारत में हैं. 2020 में इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन का अनुमान था कि करीब 7.7 करोड़ भारतीयों को डायबिटीज है. महज तीन साल में इस आंकड़े में करीब तीन करोड़ का इजाफा हुआ. भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर), मद्रास डायबिटीज रिसर्च फाउंडेशन और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के 2023 के अध्ययन से पता चला कि 10.1 करोड़ लोग डायबिटीज के साथ जिंदगी बसर कर रहे हैं और अन्य 13.6 करोड़ लोग प्री-डायबिटीज यानी डायबिटीज से पहले की अवस्था में हैं (अनुसंधान कहते हैं कि इनमें से आधों को अगले पांच साल में डायबिटीज हो सकती है). इसका मतलब है कि आबादी का लगभग पांचवां हिस्सा या तो डायबिटीज से ग्रस्त है या इसके कगार पर है. यह 12 साल तक चला अपनी तरह का सबसे बड़ा अध्ययन था, जिसमें 31 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से जुटाए गए 1,13,000 से ज्यादा प्रातिनिधिक नमूनों का इस्तेमाल किया गया. गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में एंडोक्राइनोलॉजी के डॉ. सुनील कुमार मिश्रा कहते हैं, "मधुमेह एक बढ़ती हुई समस्या है और इस मुद्दे को बहुत गंभीरता से लेना चाहिए."
Denne historien er fra September 20, 2023-utgaven av India Today Hindi.
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