छोटी पार्टियां इस दफा बड़ी ताक में
India Today Hindi|September 27, 2023
राजस्थान के उदयपुरवाटी विधानसभा क्षेत्र को सियासी प्रयोगशाला यूं ही नहीं कहा जाता. पिछले दो दशक में इसने कई प्रयोग देखे हैं. 2003 के विधानसभा चुनाव में यहां रामविलास पासवान की लोक जन शक्ति पार्टी को जीत मिली तो 2008 में यहां बसपा की बयार चली. अब 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले 'लाल डायरी' से चर्चा में आए विधायक राजेंद्र सिंह गुढ़ा ने ने शिवसेना का दामन थामकर यहां नए सियासी समीकरण गढ़ने की तैयारी कर ली है.
आनंद चौधरी
छोटी पार्टियां इस दफा बड़ी ताक में

वर्ष 2003 में यहां राजेंद्र गुढ़ा के छोटे भाई रणवीर ने लोक जन शक्ति पार्टी का परचम लहराया था तो 2008 में परिसीमन के बाद बदले हालात में राजेंद्र गुढ़ा ने यह सीट बसपा की झोली में डाल दी. 2008 में इस सीट का नाम गुढ़ा की जगह उदयपुरवाटी हो गया. 2008 में कांग्रेस 96 के आंकड़े पर अटक गई तो गुढ़ा ने बसपा के छह विधायकों के साथ कांग्रेस में शामिल होकर अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाई. दस साल बाद 2018 में एक बार फिर वैसा ही सियासी परिदृश्य बना. 2018 में कांग्रेस 99 के आंकड़े पर अटक गई तो उदयपुरवाटी से बसपा के टिकट पर दूसरी बार विधायक चुने गए गुढ़ा ने बसपा के छह विधायकों के साथ समर्थन देकर कांग्रेस की फिर सरकार बनवाई. दोनों बार गुढ़ा को होमगार्ड विभाग का राज्यमंत्री पद इनाम में मिला.

पर 2018 में गुढ़ा कहीं बेहतर महकमा चाहते थे. चार साल तक भी उम्मीद पूरी न हुई तो गुढ़ा अपनी ही सरकार के खिलाफ बगावत कर बैठे. कर्नाटक चुनाव से ठीक पहले 15 मई को सचिन पायलट के मंच पर पहुंचकर उन्होंने गहलोत सरकार पर जमकर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए. और 22 जुलाई को राजस्थान विधानसभा में उन्होंने मणिपुर की तुलना राजस्थान के महिला अपराधों से कर दी, जिसे बाद वे कांग्रेस से बरखास्त कर दिए गए. तिलमिलाए गुढ़ा गहलोत सरकार के खिलाफ 'लाल डायरी' का शिगूफा लेकर आ गए. फिर उन्होंने 9 सितंबर को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की मौजूदगी में शिवसेना (शिंदे गुट) का दामन थाम लिया.

पिछले 33 साल से राजस्थान में चुनाव लड़ रही शिवसेना इस बार गुढ़ा के जरिए राज्य अपना खाता खोलना चाहती है. गुढ़ा को उम्मीद है कि महाराष्ट्र में शिवसेना और भाजपा गठबंधन के नाते भाजपा उदयपुरवाटी में उनके सामने कोई प्रत्याशी नहीं उतरेगी.

दरअसल, राजस्थान की राजनीति में 1980 से लेकर 1990 तक छोटी पार्टियों का अच्छा-खासा दबदबा रहा है लेकिन उसके बाद यहां कांग्रेस और भाजपा के अलावा कोई और पार्टी जमीन बना नहीं पाई है. 1990 में राजस्थान में पहली बार भाजपा और जनता दल के गठजोड़ से भैरोंसिंह शेखावत की सरकार बनी थी. तब जनता दल के पास 55 विधायक थे और कांग्रेस के पास 50 तीन साल बाद 1993 में हुए विधानसभा चुनाव में जनता दल छह सीटों पर सिमट गया.

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