भाजपा के नेता इस आरोप को खारिज करते हैं कि भारत का नैरेटिव राजनीति से प्रेरित है. उलटे उनका तर्क है कि 'इंडिया' नाम राष्ट्र के औपनिवेशिक अतीत के पन्नों से निकलकर आया है
जी20 शिखर सम्मेलन के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की ओर से आयोजित आधिकारिक रात्रिभोज का अंग्रेजी निमंत्रण पत्र 5 सितंबर को भेजा गया. इसमें उन्हें 'प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया' के बजाए 'प्रेसिडेंट ऑफ भारत' बताया गया. उसी दिन जकार्ता में एसोसिएशन ऑफ साउथईस्ट एशियन नेशंस (आसियान) के 20वें शिखर सम्मेलन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा से जुड़े एक अंग्रेजी सूचनापत्र में उन्हें भारत का प्राइम मिनिस्टर कहा गया. वहां बात भी उन्होंने एशिया के साथ भारत के जुड़ाव के बारे में की.
और तो और, जी20 शिखर सम्मेलन में मोदी के सामने रखे प्लेकार्ड पर भी भारत लिखा था. आयोजन के लिए छपी सरकारी पुस्तिका भारत: द मदर ऑफ डेमोक्रेसी में लिखा था, "भारत अर्थात् इंडिया में सबसे पहले दर्ज किए गए इतिहास के समय से ही राजकाज में लोगों की इच्छा जीवन का केंद्रीय अंग रही है." इस वर्णन में संविधान के अनुच्छेद 1 में कही गई बात को उलट दिया गया, जो कहता है, 'इंडिया, दैट इज भारत, शैल बी अ यूनियन ऑफ स्टेट्स' (इंडिया अर्थात् भारत राज्यों का संघ होगा).
इन घटनाक्रमों ने सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्षी दलों के बीच जबानी जंग छेड़ दी. कयास लगाए जाने लगे कि क्या केंद्र देश का आधिकारिक नाम इंडिया से बदलकर भारत करने का मंसूबा बना रहा है? कयासों को और बल मिला जब सरकार ने एजेंडे की घोषणा किए बगैर संसद का विशेष सत्र (18-22 सितंबर) बुला लिया. सरकारी सूत्रों ने हालांकि ऐसी 'अफवाहों' को खारिज कर दिया. मगर इन अफवाहों की जड़ें उस नैरेटिव में हैं जो भाजपा और उसकी विचारधारा के स्त्रोत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेताओं ने तय किया है. संघ ने अपने से जुड़े कई संगठनों के नाम में भारत शब्द जोड़ा है. राष्ट्रपति के रात्रिभोज के निमंत्रण से दो दिन पहले संघ प्रमुख मोहन भागवत ने गुवाहाटी की एक बैठक में लोगों से इंडिया नाम का इस्तेमाल बंद करके भारत नाम अपनाने का आह्वान किया.
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