आयकर बचत और जीवन बीमा मानो एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं. ये दोनों दशकों से इस हद तक एक-दूसरे के पर्याय रहे हैं कि कई आयकरदाताओं ने पीढ़ियों से जीवन बीमा को टैक्स बचत साधन के रूप में देखा है. हाल के वर्षों में सरकार ने बीमा पॉलिसियों की मैच्योरिटी या परिपक्वता पर पॉलिसीधारकों को मिलने वाले टैक्स फ्री स्टेटस में कटौती करके इस विसंगति को दूर करने की दिशा में काम किया है. ज्यादा मूल्य वाले यूलिप को 2021 में टैक्स योग्य बना दिया गया था और इस साल की शुरुआत में बजट प्रस्ताव ने गैर-यूलिप जीवन बीमा उत्पादों के लिए टैक्स फ्री स्टेटस में समान प्रतिबंध का संकेत दिया था. वैसे, बीमा पॉलिसियों पर टैक्सेशन के इस पहलू को कैसे देखा जाए, इस बारे में ब्योरे में स्पष्टता नहीं थी.
इस साल अगस्त में सीबीडीटी (केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड) ने 17 पन्नों की एक गाइडलाइन जारी कर बताया कि यह बदलाव कैसे लागू होगा और किस तरह की गैर-यूलिप जीवन बीमा पॉलिसियां प्रभावित होंगी. प्योर टर्म बीमा पॉलिसियों को प्रीमियम राशि की परवाह किए बिना टैक्सेशन से छूट दी जाएगी. इसके अलावा, टैक्सेशन उद्देश्यों के लिए कुल प्रीमियम राशि की गणना करने के लिए प्योर टर्म पॉलिसियों के लिए भुगतान किए गए प्रीमियम को शामिल नहीं किया जाएगा. लेकिन इसमें ऐसे टर्म प्लान शामिल नहीं हैं जो मैच्योरिटी पर प्रीमियम चुकाते हैं. इसी तरह, सीबीडीटी ने यह भी स्पष्ट किया कि टैक्सेशन की खातिर प्रीमियम की गणना के लिए जीएसटी घटक को शामिल नहीं किया जाएगा.
इसमें नया क्या है?
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