समलैंगिक जोड़ों और कार्यकर्ताओं की 21 याचिकाओं पर सुनवाई करते कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के दायरे में समलैंगिक लोगों को लाने के लिए इसके प्रावधानों से छेड़छाड़ नहीं कर सकती. अदालत ने धार्मिक व्यक्तिगत कानूनों में हस्तक्षेप से साफ इनकार किया और कहा कि इस विषय को संसद पर छोड़ देते हैं. पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ में मुख्य न्यायाधीश (सीजेआइ) डी.वाइ. में चंद्रचूड़ और जस्टिस संजय किशन कौल, एस. रवींद्र भट्ट, हिमा कोहली और पी. एस. नरसिम्हा शामिल थे. पीठ ने इस साल अप्रैल-मई में 10 दिनों की मैराथन सुनवाई की थी.
चार अलग-अलग फैसले दिए गए, एक-एक सीजेआइ चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति कौल और न्यायमूर्ति नरसिम्हा ने, और एक न्यायमूर्ति भट्ट और कोहली ने संयुक्त रूप से दिया. जस्टिस भट्ट, कोहली और नरसिम्हा के लिखे गए बहुमत के फैसले ने समान लिंग वाले जोड़ों को सिविल यूनियन और बच्चों को गोद लेने का हक देने से इनकार कर दिया, जबकि सीजेआइ और जस्टिस कौल के अल्पमत के फैसले ने इसकी वकालत की. वैसे, पीठ इस पर एकमत थी कि समलैंगिक जोड़ों के साथ भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए और केंद्र तथा राज्यों से उनकी गरिमा और अधिकारों की रक्षा के लिए कानून बनाने को कहा.
सुप्रीम कोर्ट ने सर्वसम्मति से क्या कहा
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