पिछले सीजन में देश में बीघों तक फैली सियासी जमीन में जो कुछ बोया गया, उसे देखते हुए कोई भी यही उम्मीद करेगा कि अब तक तो मंडल की फसल खेतों में लहलहाने लगी होगी और मतदान के समय कटाई के लिए पूरी तरह तैयार होगी. लेकिन इस महीने जिन चार बड़े राज्य में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, उनमें कोई भी जाति को मुख्य नकदी फसल के तौर पर नहीं देख रहा. तो और क्या हो सकता है? अगर आपने पार्टी की ढिंढोरा पीटती तमाम घोषणाओं पर ध्यान नहीं दिया है तो 29 अक्तूबर को सुबह-सुबह फिजाओं में तैरने लगीं तस्वीरों से चुनावी परिदृश्य का अंदाजा लगा सकते हैं. इसमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी को छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के पास कटिया गांव में कमर तक ऊंची धान की फसल के बीच देखा जा सकता था. हाथ में हंसिया लिए और सिर पर किसानों जैसा साफा बांधे वे फसल काटने में व्यस्त मजदूरों के साथ हल्के-फुल्के अंदाज में बतियाते नजर आए. खेतों से ऐसी खुशगवार और ताजातरीन तस्वीरें देखते ही देखते उनके सोशल मीडिया टाइमलाइन पर छा गईं. इन सारी तस्वीरों और छत्तीसगढ़ी आकर्षण से असल में एक गूढ़ सच्चाई बयान होती है, जिसे अक्सर नजरअंदाज किया जाता रहा है, वह यह कि भारत में सबसे बड़ी जाति अभी भी किसान ही है.
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